Rajkummar Rao ने खुलासा किया है कि ‘Gangs of Wasseypur’ असल में एक two-hero फिल्म थी, जिसमें वह और Nawazuddin Siddiqui parallel leads थे।”, “Director Anurag Kashyap ने बाद में script बदलकर Rao को बताया कि ‘तेरा रोल अब कुछ बचा नहीं है’, जिससे उन्हें गहरा धक्का लगा।”, “Rajkummar Rao ने माना कि उस वक्त उन्हें बहुत ‘hurt’ हुआ और ‘बुरा लगा था’, लेकिन काम की ज़रूरत के चलते उन्होंने छोटा रोल भी स्वीकार कर लिया।”, “यह खुलासा Bollywood में एक नए एक्टर के संघर्ष और film-making की अनिश्चितताओं को दिखाता है, जहाँ एक बड़ा मौका हाथ से फिसल सकता है।
एक Superstar का वो दर्द जो अब छलका है
मुंबई। आज जब हम Rajkummar Rao का नाम लेते हैं, तो ज़हन में एक ऐसे मंझे हुए कलाकार की तस्वीर उभरती है जिसने अपने दम पर Bollywood में अपनी जगह बनाई है। ‘Stree’, ‘Newton’, ‘Badhaai Do’ जैसी फिल्मों से उन्होंने साबित किया है कि वह आज के दौर के सबसे versatile और dependable actors में से एक हैं। लेकिन सफलता के इस शिखर पर पहुंचने से पहले का रास्ता कांटों भरा था। हाल ही में दिए गए कुछ interviews में, Rajkummar Rao ने अपने शुरुआती करियर के एक ऐसे पन्ने को खोला है जिसे सुनकर हर कोई हैरान है। यह कहानी जुड़ी है Indian cinema की cult classic फिल्म, ‘Gangs of Wasseypur’ से, और यह दिखाती है कि कैसे एक झटके में एक उभरते हुए सितारे के सपनों को कुचल दिया गया था।Rajkummar Rao ने एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए बताया है कि जिस फिल्म में हम उन्हें एक छोटे से किरदार, शमशाद आलम, के रूप में देखते हैं, वह असल में उनके करियर का सबसे बड़ा launchpad होने वाली थी। यह फिल्म Nawazuddin Siddiqui के साथ एक two-hero project के तौर पर लिखी गई थी, जिसमें Rajkummar Rao एक parallel lead थे। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि director Anurag Kashyap का एक फोन आया और Rao के हाथ से उनका सबसे बड़ा मौका फिसल गया।
दो हीरो वाली कहानी: Wasseypur का अनसुना सच
आज से एक दशक से भी पहले की बात है। Rajkummar Rao इंडस्ट्री में नए थे, अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। तभी उनके पास Indian cinema के सबसे visionary directors में से एक, Anurag Kashyap, का फोन आया। Kashyap उन्हें ‘Gangs of Wasseypur’ के लिए cast करना चाहते थे। Rao के लिए यह किसी सपने के सच होने जैसा था। लेकिन असली खुशी की बात तो script सुनने के बाद हुई।अपने हालिया interview में Rao ने बताया, \”अनुराग सर ने मुझे बुलाया और बताया कि यह दो लड़कों की कहानी है। यह एक two-hero फिल्म थी। एक किरदार नवाज़ भाई (Nawazuddin Siddiqui) कर रहे थे और दूसरा मैं।\” कल्पना कीजिए, एक तरफ फैज़ल खान का दमदार किरदार और दूसरी तरफ उसके बराबर का एक और पावरफुल रोल, जिसे निभाने का मौका Rajkummar Rao को मिल रहा था। यह उनके लिए सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, बल्कि A-list में दाखिल होने का सीधा टिकट था। वह इस prospect को लेकर बेहद excited थे और उन्होंने तुरंत हाँ कर दी। तैयारी शुरू हो गई, सपने बुने जाने लगे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि कहानी में एक बड़ा twist आने वाला है।
‘तेरा रोल अब कुछ बचा नहीं है’: वो फोन कॉल जिसने सब बदल दिया
फिल्म की pre-production आगे बढ़ी और script में कुछ बदलाव हुए। एक दिन Rajkummar Rao के पास फिर से Anurag Kashyap का फोन आया, लेकिन इस बार खबर अच्छी नहीं थी। Rao उस पल को याद करते हुए बताते हैं, \”कुछ समय बाद, अनुराग सर का फिर फोन आया और उन्होंने कहा, ‘यार, स्क्रिप्ट बदल गई है और तेरा रोल अब कुछ बचा नहीं है’ (The script has changed and your role is not much anymore)।\”यह सुनना किसी भी नए एक्टर के लिए दिल तोड़ने वाला था। जिस रोल को वह अपने करियर का turning point मान रहे थे, वह अब script से लगभग गायब हो चुका था। Rao ने अपनी निराशा को नहीं छिपाया। उन्होंने कहा, \”ईमानदारी से कहूँ तो, मुझे बहुत बुरा लगा था। I felt hurt। मुझे बहुत निराशा हुई (I felt very bad. I felt hurt. I was very disappointed)।\” यह सिर्फ़ एक रोल खोने का दर्द नहीं था, यह उस उम्मीद के टूटने का दर्द था जो एक बड़ा डायरेक्टर आपको देता है और फिर वापस ले लेता है। Anurag Kashyap की ईमानदारी क़ाबिल-ए-तारीफ़ थी कि उन्होंने Rao को अंधेरे में नहीं रखा, लेकिन सच कड़वा था और उसने Rao को अंदर तक हिला दिया था।
मजबूरी और जुनून: क्यों किया छोटा रोल?
दिल टूटने और निराशा के बावजूद, Rajkummar Rao ने ‘Gangs of Wasseypur’ नहीं छोड़ी। उन्होंने उस छोटे से, लगभग insignificant रोल को भी करने के लिए हामी भर दी। क्यों? इसका जवाब Bollywood की उस कड़वी सच्चाई में छिपा है जिसका सामना हर outsider को करना पड़ता है: काम की ज़रूरत और पैसों की तंगी।Rao बताते हैं, \”लेकिन फिर मैंने सोचा, ठीक है, कोई बात नहीं। उस समय काम मिलना ही सबसे बड़ी बात थी। As long as I’m getting work, that was all fine।\” उन्होंने यह भी बताया कि उस दौर में किसी के पास पैसे नहीं होते थे। \”Nobody had money,\” उन्होंने कहा। यह दिखाता है कि एक एक्टर के लिए जुनून और कला जितनी ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है सर्वाइवल। वह जानते थे कि Anurag Kashyap जैसे डायरेक्टर के साथ काम करने का मौका, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, गंवाना नहीं चाहिए। उन्होंने अपने ego को, अपने दर्द को एक तरफ रखा और सिर्फ़ काम पर focus किया। यह फैसला उनके professional attitude और resilience को दिखाता है, जिसने शायद आगे चलकर उनकी सफलता की नींव रखी।
इंडस्ट्री का आईना और एक सबक
Rajkummar Rao की यह कहानी सिर्फ़ एक काटे गए रोल की दास्ताँ नहीं है, यह पूरी film industry का एक आइना है। यह दिखाती है कि यहाँ कुछ भी permanent नहीं है। एक script रातों-रात बदल सकती है, एक बड़ा रोल छोटा हो सकता है, और सपने पल में टूट सकते हैं। यह कहानी उन हज़ारों struggling actors को हिम्मत देती है जो रोज़ ऐसी ही अनिश्चितताओं का सामना करते हैं।आज जब ‘Gangs of Wasseypur’ को एक masterpiece माना जाता है और Nawazuddin Siddiqui का फैज़ल खान का किरदार iconic बन चुका है, तो यह सोचना दिलचस्प है कि अगर original script बनी रहती तो क्या होता। शायद हम Rajkummar Rao को एक बिल्कुल अलग और दमदार अंदाज़ में बहुत पहले ही देख चुके होते। लेकिन जो हुआ, शायद अच्छे के लिए ही हुआ। उस छोटे से रोल ने भी उन्हें industry में बनाए रखा और आज वह जिस मुक़ाम पर हैं, वह उनकी अपनी मेहनत, प्रतिभा और उस दिन दिखाई गई हिम्मत का नतीजा है, जब उन्होंने दिल टूटने के बावजूद ‘Action’ सुनने का फैसला किया था।