शुक्रवार, 11 जुलाई, 2025 – यह तारीख भारतीय फुटबॉल के इतिहास में एक काले दिन के रूप में दर्ज हो सकती है। यह वो दिन है जब देश की सबसे बड़ी फुटबॉल लीग, Indian Super League (ISL) का पहिया अचानक थम गया। एक आधिकारिक घोषणा में, ISL ने अपने आगामी 2025-26 सीजन को अनिश्चितकाल के लिए ‘on hold’ पर डालने का ऐलान किया। यह खबर किसी बम की तरह फटी, जिसने खिलाड़ियों, क्लब मालिकों, प्रायोजकों और करोड़ों फैंस को सदमे में डाल दिया। इस भूचाल के केंद्र में कोई मैदान की हार-जीत नहीं, बल्कि बंद कमरों में हुई एक प्रशासनिक ‘नाकामी’ है, जिसके तार सीधे All India Football Federation (AIFF) से जुड़ रहे हैं। यह एक ऐसी कहानी है जो कुप्रबंधन, लापरवाही और खोखले वादों की परतों को उघाड़ती है।
## क्यों रुका ISL का पहिया? Master Rights Agreement का पेंच
आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक पूरी लीग को ठप्प करना पड़ा? जवाब एक तीन अक्षर के शब्द में छिपा है: MRA, यानी Master Rights Agreement। यह AIFF और ISL के बीच का वो foundational agreement है जो लीग के आयोजन, संचालन और व्यावसायिक अधिकारों की रूपरेखा तय करता है। सरल शब्दों में, यह AIFF द्वारा ISL को देश की शीर्ष लीग के रूप में चलाने का आधिकारिक लाइसेंस है।
सूत्रों के मुताबिक, यह MRA अब नवीनीकरण (renewal) के लिए लंबित है, और दोनों पक्षों के बीच इसे लेकर गंभीर अनिश्चितता बनी हुई है। जब देश की सर्वोच्च फुटबॉल संस्था (AIFF) और उसकी सबसे बड़ी लीग के बीच ही बुनियादी समझौते पर सहमति न बन पाए, तो लीग का चलना असंभव हो जाता है। ISL का सीजन को ‘होल्ड’ पर रखने का फैसला इसी प्रशासनिक गतिरोध का सीधा नतीजा है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसने भारतीय फुटबॉल को एक चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहाँ से आगे का रास्ता धुंधला और अनिश्चित नजर आ रहा है।
## AIFF की घोर ‘Incompetence’ या सब कुछ पहले से तय था?
इस संकट के सामने आते ही, फुटबॉल जगत की उंगलियां सीधे AIFF की तरफ उठ रही हैं। ESPN जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों और कई वरिष्ठ खेल पत्रकारों ने इसे AIFF की घोर अक्षमता (incompetence) का जीता-जागता सबूत बताया है। पत्रकार अनिरुद्ध मेनन ने जो कहा, वह इस पूरी स्थिति का सार है: “The absolute worst part is that everyone saw it coming from a mile off.” यानी, सबसे बुरी बात यह है कि हर किसी को यह संकट दूर से ही आता हुआ दिख रहा था।
यह टिप्पणी AIFF के कामकाज पर एक गंभीर सवाल खड़ा करती है। अगर विशेषज्ञों को यह संकट पहले से ही नजर आ रहा था, तो AIFF के अधिकारी क्या कर रहे थे? वे इस समस्या को समय रहते हल करने में क्यों विफल रहे? सोशल मीडिया पर फैंस का गुस्सा फूट पड़ा है। एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक यूजर तारेक लस्कर ने इसे ‘the mess that is football admin in India’ (भारत में फुटबॉल प्रशासन की गंदगी) का एक हिस्सा बताया। यह सिर्फ एक व्यक्ति की राय नहीं, बल्कि यह उस आम धारणा को दर्शाता है जो भारतीय फुटबॉल के प्रशंसकों के बीच घर कर गई है – कि हमारे प्रशासक बड़े सपने तो दिखाते हैं, लेकिन बुनियादी जिम्मेदारियां निभाने में भी नाकाम रहते हैं।
## ‘Vision 2047’ बना एक मज़ाक
कुछ ही समय पहले, AIFF ने बड़े गाजे-बाजे के साथ अपना महत्वाकांक्षी ‘Vision 2047’ प्लान लॉन्च किया था। यह एक रणनीतिक रोडमैप था जिसमें यह सपना दिखाया गया था कि 2047 तक भारत फुटबॉल की दुनिया में एक महाशक्ति बनेगा। लेकिन अब, जब AIFF अपनी प्रीमियर लीग का अगला सीजन भी सुनिश्चित नहीं करा पा रहा है, तो यह ‘Vision 2047’ एक क्रूर मजाक जैसा लगता है।
यह एक ‘farcical’ स्थिति है, जैसा कि एक ESPN लेख में कहा गया। आप 2047 के लिए योजना कैसे बना सकते हैं जब आप 2025 का संकट भी नहीं संभाल सकते? यह घटना AIFF की योजनाओं और उनकी जमीनी हकीकत के बीच की गहरी खाई को उजागर करती है। यह दिखाता है कि शानदार प्रेजेंटेशन और लंबे-चौड़े वादे करना आसान है, लेकिन प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभाना और एक स्थिर फुटबॉल इकोसिस्टम बनाना कहीं ज्यादा मुश्किल काम है, जिसमें AIFF बुरी तरह विफल होता दिख रहा है।
## खिलाड़ियों, क्लबों और फैंस का भविष्य अधर में
इस प्रशासनिक लड़ाई का सबसे बड़ा खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है जिनका खेल से सीधा वास्ता है।
* **खिलाड़ी:** सैकड़ों फुटबॉलरों का करियर दांव पर लग गया है। उनके कॉन्ट्रैक्ट, उनकी आय और उनका भविष्य, सब कुछ अब अनिश्चित है। एक खिलाड़ी के लिए एक पूरा सीजन गंवाने का मतलब उसके प्राइम यर्स की बर्बादी है।
* **क्लब:** क्लबों ने खिलाड़ियों को साइन करने, इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने और मार्केटिंग पर करोड़ों रुपये का निवेश किया है। अब उन्हें नहीं पता कि उनकी टीमों का क्या होगा। इस एक फैसले से उन्हें भारी वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
* **प्रायोजक (Sponsors):** जिन कंपनियों ने लीग में करोड़ों रुपये लगाए हैं, वे अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं। उन्हें वह प्लेटफॉर्म ही नहीं मिल रहा है जिसके लिए उन्होंने भुगतान किया था।
* **फैंस:** और अंत में, करोड़ों फैंस, जो भारतीय फुटबॉल के पुनरुत्थान का सपना देख रहे थे, आज निराश और गुस्से में हैं। उनके विश्वास को एक बार फिर तोड़ा गया है।
यह संकट सिर्फ एक लीग का रुकना नहीं है। यह उस पूरी प्रगति पर एक कुठाराघात है जो भारतीय फुटबॉल ने पिछले एक दशक में हासिल की थी। यह उस भरोसे की हत्या है जिसे बनाने में सालों लगे थे। सवाल यह है कि क्या भारतीय फुटबॉल इस ‘self-inflicted wound’ यानी खुद दिए गए घाव से उबर पाएगा? इसका जवाब AIFF के अगले कदमों पर निर्भर करेगा, लेकिन फिलहाल, भारतीय फुटबॉल का भविष्य अंधेरे में है।