नई दिल्ली। भारत अपने समुद्री इंफ्रास्ट्रक्चर में एक क्रांतिकारी बदलाव की ओर कदम बढ़ा रहा है, एक ऐसा कदम जो न केवल देश की अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार देगा, बल्कि वैश्विक समुद्री व्यापार के नक्शे पर भारत की स्थिति को हमेशा के लिए बदल देगा। शिपिंग मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि देश के तीन प्रमुख बंदरगाहों – तमिलनाडु में कामराजार, ओडिशा में पारादीप और गुजरात में दीनदयाल – को विशालकाय ‘Cape-Size’ जहाजों को संभालने के लिए तैयार किया जा रहा है। यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट इन बंदरगाहों की ड्राफ्ट (पानी की गहराई) को 18 मीटर तक ले जाएगा, जो भारतीय बंदरगाहों के लिए एक नया benchmark स्थापित करेगा।
क्या है ‘Cape-Size’ का मतलब और क्यों है यह इतना महत्वपूर्ण?
समुद्री व्यापार की दुनिया में ‘Cape-Size’ उन जहाजों को कहा जाता है जो अपने विशाल आकार के कारण स्वेज या पनामा नहर से नहीं गुजर सकते। इन जहाजों को अफ्रीका के ‘Cape of Good Hope’ या दक्षिण अमेरिका के ‘Cape Horn’ का चक्कर लगाकर अपना सफर पूरा करना पड़ता है। ये जहाज एक बार में भारी मात्रा में माल, जैसे कोयला, लौह अयस्क और अन्य कच्चा माल, ले जाने की क्षमता रखते हैं।
इन जहाजों को अपने पोर्ट पर संभालने की क्षमता रखना किसी भी देश के लिए एक बड़ा strategic advantage है। इसके फायदे साफ हैं: Economies of Scale। एक बड़े जहाज में ज्यादा माल आने का मतलब है प्रति टन माल की ढुलाई लागत (logistics cost) में भारी कमी। इससे भारतीय कंपनियों के लिए आयात सस्ता होगा और भारतीय निर्यातकों का माल वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेगा। 18-मीटर ड्राफ्ट का मतलब है कि भारत अब उन चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो जाएगा जो इन समुद्री दिग्गजों की मेजबानी कर सकते हैं, जिससे देश एक प्रमुख ट्रांसशिपमेंट हब बनने के और करीब आ जाएगा।
तीन महायोद्धा: कामराजार, पारादीप और दीनदयाल पोर्ट की प्रोफाइल
इस महा-प्रोजेक्ट के लिए चुने गए तीनों पोर्ट्स अपनी-अपनी जगह पर रणनीतिक महत्व रखते हैं।
- कामराजार पोर्ट (एन्नोर, तमिलनाडु): भारत का पहला कॉर्पोरेटाइज्ड पोर्ट, कामराजार पूर्वी तट पर एक प्रमुख ऊर्जा बंदरगाह है। इसकी लोकेशन इसे दक्षिण पूर्व एशिया के व्यापार मार्गों के लिए बेहद अहम बनाती है। 18-मीटर ड्राफ्ट के साथ, यह पोर्ट बड़े कोयला और LNG टैंकरों को आसानी से संभाल सकेगा, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा और मजबूत होगी।
- पारादीप पोर्ट (ओडिशा): यह पोर्ट पहले से ही भारत के डीप-ड्राफ्ट बंदरगाहों में से एक है। पारादीप पोर्ट अथॉरिटी (PPA) के अनुसार, यह वर्तमान में 16.5 मीटर की अधिकतम ड्राफ्ट, 300 मीटर की लंबाई (LOA), 46 मीटर की चौड़ाई (Beam), और 1,55,000 DWT (Deadweight Tonnage) वाले सुपर-केप-साइज जहाजों को संभालने में सक्षम है। इसे 18 मीटर तक अपग्रेड करना इसकी क्षमताओं को और बढ़ाएगा और इसे पूर्वी भारत का सबसे शक्तिशाली गेटवे बना देगा, खासकर खनिज और कोयला व्यापार के लिए।
- दीनदयाल पोर्ट (कांडला, गुजरात): कार्गो हैंडलिंग के मामले में भारत के सबसे व्यस्ततम बंदरगाहों में से एक, दीनदयाल पोर्ट पश्चिमी तट पर देश का एक प्रमुख व्यापारिक द्वार है। इसे 18-मीटर ड्राफ्ट के लिए अपग्रेड करने से यह उत्तरी और पश्चिमी भारत के विशाल भीतरी इलाकों की सेवा करने की अपनी क्षमता में कई गुना वृद्धि कर लेगा। यह कदम इसे मध्य पूर्व, यूरोप और अफ्रीका के साथ व्यापार के लिए और भी अधिक आकर्षक बना देगा।
14 से 18 मीटर का सफ़र: Engineering Challenges और आर्थिक लाभ
शिपिंग सचिव के बयान के अनुसार, “प्रमुख बंदरगाहों ने 14 मीटर की ड्राफ्ट हासिल कर ली है, जबकि कामराजार, पारादीप और दीनदयाल जैसे पोर्ट केप-साइज जहाजों को समायोजित करने के लिए 18-मीटर ड्राफ्ट की ओर बढ़ रहे हैं।” यह बयान जितना सरल लगता है, इसके पीछे उतनी ही बड़ी इंजीनियरिंग और वित्तीय चुनौती है। ड्राफ्ट बढ़ाने का मतलब है समुद्र तल की व्यापक ड्रेजिंग (खुदाई), नेविगेशन चैनलों को चौड़ा और गहरा करना, और बर्थिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना ताकि वे इन विशाल जहाजों का वजन और दबाव झेल सकें। यह एक महंगा और समय लेने वाला काम है, लेकिन इसके दीर्घकालिक आर्थिक फायदे इन चुनौतियों से कहीं ज्यादा बड़े हैं।
इस अपग्रेडेशन से भारत की supply chain efficiency में जबरदस्त सुधार होगा। जहाजों को बंदरगाह में प्रवेश के लिए ज्वार-भाटे (tide) का इंतजार नहीं करना पड़ेगा, जिससे जहाजों का टर्नअराउंड टाइम घटेगा। इससे न केवल समय की बचत होगी बल्कि बंदरगाहों पर भीड़ भी कम होगी। यह प्रोजेक्ट भारत सरकार के ‘Sagarmala’ कार्यक्रम के उद्देश्यों के साथ पूरी तरह से मेल खाता है, जिसका लक्ष्य पोर्ट-लेड डेवलपमेंट के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को गति देना है।
Global Maritime Race में भारत की बड़ी छलांग
यह कदम भारत को वैश्विक समुद्री दौड़ में एक मजबूत दावेदार के रूप में स्थापित करता है। अब तक, दक्षिण एशिया में बड़े ट्रांसशिपमेंट हब का फायदा कोलंबो और सिंगापुर जैसे बंदरगाहों को मिलता रहा है। 18-मीटर ड्राफ्ट क्षमता वाले भारतीय बंदरगाह अब इस ट्रैफिक का एक बड़ा हिस्सा अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं। यह न केवल विदेशी मुद्रा बचाने में मदद करेगा जो भारतीय कंपनियां विदेशी बंदरगाहों पर खर्च करती हैं, बल्कि यह भारत को पड़ोसी देशों (जैसे नेपाल, भूटान, बांग्लादेश) के लिए एक प्राकृतिक गेटवे भी बनाएगा।
संक्षेप में, यह प्रोजेक्ट सिर्फ बंदरगाहों की गहराई बढ़ाने के बारे में नहीं है। यह भारत की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं को गहरा करने, व्यापार की बाधाओं को दूर करने और 21वीं सदी के वैश्विक व्यापार में एक निर्णायक भूमिका निभाने की तैयारी के बारे में है। हालांकि इस प्रोजेक्ट के पूरा होने की कोई निश्चित समय-सीमा अभी घोषित नहीं की गई है, लेकिन यह स्पष्ट है कि जब यह पूरा होगा, तो भारतीय समुद्री क्षेत्र का परिदृश्य हमेशा के लिए बदल चुका होगा।