HDFC CEO के केस से क्यों दूर भाग रहे जज? बॉम्बे हाईकोर्ट में अनोखा ड्रामा, सुप्रीम कोर्ट ने भी फेरा मुँह

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न्याय के मंदिर में अनोखा ड्रामा: जब जज ही करने लगे केस से किनारा

भारतीय Corporate जगत के सबसे शक्तिशाली चेहरों में से एक, HDFC बैंक के CEO और MD शशिधर जगदीशन, इन दिनों एक ऐसी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं जो किसी high-voltage thriller से कम नहीं है। यह मामला सिर्फ एक FIR का नहीं है, बल्कि यह न्यायपालिका के गलियारों में हो रहे एक ऐसे अनोखे ड्रामे की कहानी है, जहाँ जज ही केस की सुनवाई से एक-एक करके पीछे हट रहे हैं। शशिधर जगदीशन अपने ऊपर लगे ‘kickbacks’ के आरोपों वाली एक FIR को रद्द करवाने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट पहुँचे, लेकिन वहाँ उन्हें न्याय मिलने की जगह एक अजीबोगरीब स्थिति का सामना करना पड़ा, जहाँ कोई भी जज उनका केस सुनने को तैयार नहीं था।

यह मामला तब और भी ज़्यादा सनसनीखेज हो गया जब थक-हारकर देश के सबसे बड़े वकील मुकुल रोहतगी के साथ जगदीशन सुप्रीम कोर्ट पहुँचे, लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत ने भी उनकी याचिका पर सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया। एक CEO, एक ‘frivolous’ FIR, और जजों का रहस्यमयी ‘recusal’ – यह कहानी corporate power और judicial process के बीच की एक ऐसी पहेली बन गई है, जिसने कानून के जानकारों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है।

जजों का ‘Not Before Me’ वाला अनोखा सिलसिला

इस पूरे मामले का सबसे नाटकीय पहलू बॉम्बे हाईकोर्ट में देखने को मिला। जून के आखिरी हफ्ते में जब शशिधर जगदीशन की याचिका सुनवाई के लिए आई, तो एक अभूतपूर्व सिलसिला शुरू हुआ। एक के बाद एक जज ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, जिसे कानूनी भाषा में ‘recusal’ कहते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कम से कम चार जजों ने इस केस पर सुनवाई करने से मना कर दिया।

यह सिलसिला किसी एक जज तक सीमित नहीं रहा।

  • जस्टिस कोटल (Justice Kotwal) ने यह कहते हुए खुद को अलग कर लिया कि वह अतीत में इस मामले से जुड़े एक ट्रस्टी के वकील रह चुके हैं। यह एक standard procedure है, जहाँ conflict of interest से बचने के लिए जज ऐसा करते हैं।
  • लेकिन मामला तब और भी दिलचस्प हो गया जब जस्टिस पाटिल (Justice Patil) की बेंच के सामने यह केस आया। जस्टिस पाटिल के एक सहयोगी ने अदालत में बताया कि, ‘मेरे भाई (जस्टिस पाटिल) HDFC से जुड़े मामलों की सुनवाई नहीं करते हैं।’ यह एक असामान्य कारण था, जिसने कई सवाल खड़े कर दिए।
  • इसके बाद जस्टिस गौतम अनखड़ (Justice Gautam Ankhad) इस केस से हटने वाले चौथे जज बने।

जगदीशन के वकील मुकुल रोहतगी ने तो सुप्रीम कोर्ट में यह तक कह दिया कि कम से कम पांच जजों ने इस मामले से खुद को अलग किया है। जजों का इस तरह लगातार पीछे हटना न केवल मामले में देरी का कारण बना, बल्कि इसने इस केस को और भी ज़्यादा रहस्यमयी बना दिया। आखिर देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंक के CEO के केस में ऐसा क्या था कि जज उसे छूने से भी बच रहे थे?

क्या है पूरा मामला? Kickbacks के आरोपों में घिरे CEO

इस पूरी कानूनी लड़ाई की जड़ में एक FIR है, जो शशिधर जगदीशन के खिलाफ दर्ज की गई है। यह FIR कथित तौर पर लीलावती हॉस्पिटल ट्रस्ट (Lilavati Hospital Trust) से जुड़े ‘kickbacks’ यानी दलाली या घूस के आरोपों से संबंधित है। हालांकि, FIR में लगे आरोपों की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक नहीं है, लेकिन जगदीशन और उनके वकीलों का मानना है कि यह पूरी तरह से बेबुनियाद और परेशान करने के इरादे से दर्ज की गई है।

सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान, देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल और जगदीशन के वकील मुकुल रोहतगी ने इस FIR को ‘frivolous’ (तुच्छ और व्यर्थ) करार दिया। उनका तर्क था कि यह FIR सिर्फ HDFC बैंक के CEO की छवि खराब करने और उन्हें परेशान करने की एक साज़िश है, और इसे पहली नज़र में ही रद्द कर दिया जाना चाहिए। इसी मांग को लेकर वह बॉम्बे हाईकोर्ट गए थे। लेकिन वहाँ केस की merit पर सुनवाई होने से पहले ही वह जजों के recusal के चक्रव्यूह में फँस गए।

हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक: जब देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी की सुनवाई से इंकार

बॉम्बे हाईकोर्ट में हो रही अभूतपूर्व देरी और जजों के लगातार पीछे हटने से परेशान होकर शशिधर जगदीशन ने अपनी कानूनी लड़ाई को अगले स्तर पर ले जाने का फैसला किया। उन्होंने सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। 4 जुलाई, 2025 को उनकी याचिका पर सुनवाई हुई। मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने अपनी पूरी व्यथा रखी। उन्होंने बताया कि कैसे बॉम्बे हाईकोर्ट में उनका मामला एक बेंच से दूसरी बेंच पर घूम रहा है और कोई भी जज सुनवाई करने को तैयार नहीं है, जिससे उनके मुवक्किल के न्याय पाने के अधिकार का हनन हो रहा है।

लेकिन यहाँ भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से साफ इनकार कर दिया। अदालत ने उनकी याचिका को ‘entertain’ करने से मना कर दिया, जिसका सीधा मतलब था कि उन्हें वापस बॉम्बे हाईकोर्ट ही जाना होगा और वहीं अपनी लड़ाई लड़नी होगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने जगदीशन के लिए कानूनी रास्ता और भी मुश्किल बना दिया है। वह अब उसी हाईकोर्ट में वापस जाने को मजबूर हैं, जहाँ उनका केस पहले से ही एक judicial roadblock का शिकार है।

यह घटनाक्रम कई बड़े सवाल खड़े करता है। क्या HDFC बैंक का विशाल आकार और प्रभाव ही जजों के पीछे हटने का कारण है? क्या जज किसी भी तरह के संभावित विवाद से बचने के लिए ऐसा कर रहे हैं? या फिर इस मामले में कुछ ऐसा है जो अभी तक सामने नहीं आया है? वजह चाहे जो भी हो, देश के इतने बड़े बैंक के CEO के मामले में इस तरह की न्यायिक अनिश्चितता corporate governance और legal system दोनों के लिए एक चिंता का विषय है।

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