चार नए चेहरे, Council of States में नई ऊर्जा
नई दिल्ली। भारतीय संसद के उच्च सदन, राज्यसभा, जिसे ‘Council of States’ भी कहा जाता है, में चार नई प्रतिष्ठित हस्तियों का आगमन हुआ है। भारत की राष्ट्रपति ने अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए पूर्व विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला, प्रसिद्ध वकील उज्ज्वल निकम, सी. सदानंदन मास्टर और मीनाक्षी जैन को सदन के लिए नामित किया है। यह कदम एक बार फिर राज्यसभा की उस अनूठी परंपरा को उजागर करता है, जहां राजनीति से परे, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ देश के सर्वोच्च विधायी मंच पर अपना ज्ञान और अनुभव लाते हैं।
इन चारों का नामांकन ऐसे समय में हुआ है जब भारत और दुनिया, दोनों ही महत्वपूर्ण परिवर्तनों के दौर से गुजर रहे हैं। हर्ष वर्धन श्रृंगला, जिन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत और विदेश सचिव के रूप में कार्य किया है, वैश्विक कूटनीति की जटिलताओं की गहरी समझ रखते हैं। हाल ही में एक अमेरिकी अधिकारी की भारत यात्रा पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था कि यह यात्रा ‘global upheaval’ के समय हो रही है। उनका अनुभव सदन को अंतरराष्ट्रीय मामलों पर एक अद्वितीय perspective प्रदान करेगा।
वहीं, उज्ज्वल निकम का नाम देश के कानूनी हलकों में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। कई हाई-प्रोफाइल मामलों में सरकारी वकील के रूप में उनकी भूमिका ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उनकी कानूनी सूझबूझ और न्याय प्रणाली की गहरी समझ निश्चित रूप से विधायी बहसों को और समृद्ध करेगी। सी. सदानंदन मास्टर और मीनाक्षी जैन भी अपने-अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं, और उनका नामांकन राज्यसभा के वैचारिक ताने-बाने को और मजबूत करेगा।
क्या है राज्यसभा और इसकी Nomination प्रक्रिया?
राज्यसभा भारतीय लोकतंत्र का एक स्थायी सदन है, जो कभी भंग नहीं होता। संविधान के अनुसार, इसकी अधिकतम सदस्य संख्या 250 हो सकती है। इनमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं, जबकि 12 सदस्यों को सीधे राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाता है।
यह नामांकन प्रक्रिया भारतीय संविधान की एक खास विशेषता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जिन लोगों के पास कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों में ‘special knowledge’ या ‘practical experience’ है, वे चुनावी राजनीति की बाधाओं के बिना भी देश की नीति-निर्माण प्रक्रिया में योगदान दे सकें। 1952 में जब पहली बार राज्यसभा का गठन हुआ, तब से यह परंपरा चली आ रही है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इन मनोनीत सदस्यों के अधिकार चुने हुए सदस्यों से थोड़े अलग होते हैं। राज्यसभा के एक आधिकारिक FAQ document के अनुसार, मनोनीत सदस्य भारत के उपराष्ट्रपति के चुनाव में तो मतदान कर सकते हैं, लेकिन वे राष्ट्रपति के चुनाव में मतदान करने के हकदार नहीं होते हैं। यह सूक्ष्म अंतर उनके गैर-चुनावी चरित्र को दर्शाता है। किसी भी सदस्य की अयोग्यता पर अंतिम निर्णय राष्ट्रपति का होता है, लेकिन वह यह निर्णय भारत के चुनाव आयोग (Election Commission of India) की राय के अनुसार ही लेते हैं।
सितारों से लेकर खिलाड़ियों तक: Rajya Sabha की गौरवशाली विरासत
इतिहास गवाह है कि राज्यसभा के मनोनीत सदस्यों की सूची हमेशा से ही सितारों से सजी रही है। 1952 में ही, जब सदन का पहला सत्र शुरू हुआ, तो इसमें प्रोफेसर सत्येन्द्र नाथ बोस और पृथ्वीराज कपूर जैसे दिग्गज शामिल थे। लेकिन शायद सबसे महत्वपूर्ण नामों में से एक Smt. Rukmini Devi Arundale का है, जो 1952 से 1962 तक सदस्य रहीं और सदन की पहली मनोनीत महिला सदस्य बनीं।
सिनेमा जगत से यह जुड़ाव और भी गहरा हुआ जब महान अभिनेत्री नरगिस दत्त राज्यसभा पहुंचने वाली पहली महिला फिल्म स्टार बनीं। उनकी उपस्थिति ने सदन में कला और संस्कृति की आवाज को बुलंद किया।
यह विरासत आज भी जीवित है। हाल ही में, भारत की महान एथलीट पीटी उषा ने इतिहास रचा जब राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ ने उन्हें Vice-chairpersons के पैनल में नियुक्त किया। यह पहली बार था कि किसी मनोनीत सदस्य को यह सम्मान मिला। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि मनोनीत सदस्य केवल सांकेतिक पदों पर नहीं रहते, बल्कि सदन की कार्यवाही में सक्रिय और महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस सदन का महत्व इस बात से भी पता चलता है कि इसके पहले चेयरमैन डॉ. एस. राधाकृष्णन थे, जो भारत के पहले उपराष्ट्रपति भी बने और लगातार दो कार्यकालों के लिए चुने गए।
सिर्फ एक सदन नहीं, Prime Minister बनाने की भी ताकत
राज्यसभा को अक्सर लोकसभा की तुलना में कम शक्तिशाली माना जाता है, लेकिन इसका राजनीतिक और विधायी महत्व बहुत गहरा है। यह न केवल विधेयकों पर पुनर्विचार करने और बहस के लिए एक मंच प्रदान करता है, बल्कि इसने देश को कई प्रधानमंत्री भी दिए हैं।
श्रीमती इंदिरा गांधी, श्री एच.डी. देवेगौड़ा, और श्री इंदर कुमार गुजराल, ये सभी उस समय राज्यसभा के सदस्य थे जब वे भारत के Prime Minister बने। यह तथ्य इस सदन की राजनीतिक शक्ति को रेखांकित करता है। यह राज्यों के अधिकारों का संरक्षक भी है और केंद्र सरकार की शक्तियों पर एक महत्वपूर्ण check and balance का काम करता है।
नए सदस्यों के नामांकन के साथ, राज्यसभा एक बार फिर अपनी भूमिका को निभाने के लिए तैयार है। हर्ष वर्धन श्रृंगला की कूटनीतिक विशेषज्ञता, उज्ज्वल निकम का कानूनी ज्ञान, और अन्य सदस्यों का विविध अनुभव, आने वाले समय में राष्ट्रीय बहसों को एक नई दिशा और गहराई प्रदान करेगा। यह नामांकन इस बात की याद दिलाता है कि लोकतंत्र केवल वोटों का खेल नहीं है, बल्कि यह ज्ञान, अनुभव और विशेषज्ञता का संगम भी है, जो राष्ट्र को आगे ले जाने के लिए आवश्यक है।