‘Udaipur Files’ पर दिल्ली High Court की रोक, Release से ठीक पहले बड़ा झटका, अब केंद्र सरकार करेगी फैसला
नई दिल्ली। देश को झकझोर देने वाले उदयपुर के कन्हैया लाल हत्याकांड पर बनी फिल्म ‘Udaipur Files’ अपनी रिलीज से ठीक एक दिन पहले कानूनी पचड़े में फंस गई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार, 10 जुलाई 2025 को एक अहम फैसला सुनाते हुए फिल्म की रिलीज पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। यह फैसला फिल्म निर्माताओं के लिए एक बहुत बड़ा setback है, जो 11 जुलाई को फिल्म को देशभर के सिनेमाघरों में लाने की तैयारी कर रहे थे। अब इस फिल्म का भविष्य केंद्र सरकार के हाथों में है, जिसे कोर्ट ने फिल्म के सर्टिफिकेशन पर अंतिम निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
यह मामला एक बार फिर से भारत में ‘freedom of expression’ और संवेदनशील सामाजिक घटनाओं के फिल्मी रूपांतरण पर होने वाले विवादों को सामने लाता है। कोर्ट का यह आदेश कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया, जिनमें फिल्म की रिलीज से public order बिगड़ने की आशंका जताई गई थी।
क्या है ‘Udaipur Files’ का पूरा मामला?
यह फिल्म 2022 की उस भयावह घटना पर आधारित है, जिसने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी। जून 2022 में उदयपुर में एक दर्जी, कन्हैया लाल की उनकी दुकान में घुसकर दो लोगों ने बेरहमी से हत्या कर दी थी। हमलावरों ने इस पूरी घटना का वीडियो बनाया और उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया, जिसमें वे हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए दिखाई दे रहे थे। यह हत्या कथित तौर पर पैगंबर मोहम्मद पर की गई एक टिप्पणी के समर्थन में कन्हैया लाल द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट करने के बाद की गई थी। इस घटना ने देश भर में सांप्रदायिक तनाव को हवा दी और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए।
‘Udaipur Files’ इसी संवेदनशील और दर्दनाक कहानी को पर्दे पर लाने का एक प्रयास है। फिल्म के निर्माताओं का कहना है कि उनका मकसद सच्चाई को सामने लाना है, लेकिन याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस तरह की फिल्म समाज में पुराने जख्मों को फिर से कुरेद सकती है और विभिन्न समुदायों के बीच नफरत को और बढ़ा सकती है। फिल्म का ट्रेलर रिलीज होने के बाद से ही यह विवादों के केंद्र में थी, और कई संगठनों ने इसकी रिलीज का विरोध किया था।
High Court का फैसला: Release पर रोक क्यों?
दिल्ली हाई कोर्ट की एक बेंच ने याचिकाओं के एक समूह (a batch of petitions) पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि फिल्म तब तक रिलीज नहीं की जाएगी जब तक केंद्र सरकार फिल्म के सर्टिफिकेशन से जुड़ी एक ‘revision plea’ पर अपना अंतिम फैसला नहीं ले लेती। इसका मतलब यह है कि Central Board of Film Certification (CBFC) द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट को चुनौती दी गई है, और अब केंद्र सरकार को इस पर पुनर्विचार करना होगा।
अदालत ने कहा, “जब तक केंद्र सरकार रिवीजन याचिका पर कोई निर्णय नहीं ले लेती, तब तक फिल्म रिलीज नहीं होगी।” अदालत ने किसी भी पक्ष के तर्कों की मेरिट पर कोई टिप्पणी नहीं की, बल्कि प्रक्रियात्मक आधार पर यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस मामले की संवेदनशीलता को समझते हुए गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है। यह फैसला एक तरह से ‘wait and watch’ की स्थिति पैदा करता है, जहाँ फिल्म का भविष्य पूरी तरह से सरकारी फैसले पर निर्भर करेगा। याचिकाकर्ताओं ने संभवतः यह दलील दी होगी कि फिल्म का चित्रण भड़काऊ हो सकता है और यह देश की कानून-व्यवस्था के लिए खतरा पैदा कर सकता है, खासकर उन इलाकों में जहाँ सांप्रदायिक माहौल पहले से ही नाजुक है।
Producer का अगला कदम: Supreme Court की दहलीज़ पर
हाई कोर्ट के इस फैसले से फिल्म के निर्माता अमित जानी को गहरा धक्का लगा है। उन्होंने इस फैसले पर असहमति जताते हुए कहा है कि वे न्याय के लिए देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। जानी ने एक बयान में कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।” उनका यह बयान दर्शाता है कि यह कानूनी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है और आने वाले दिनों में और भी तेज हो सकती है।
फिल्म निर्माताओं के लिए यह न केवल रचनात्मक स्वतंत्रता का मामला है, बल्कि एक बड़ा वित्तीय झटका भी है। फिल्म की रिलीज के लिए प्रमोशन और डिस्ट्रीब्यूशन पर भारी रकम खर्च की जा चुकी थी। अब रिलीज की तारीख अनिश्चित काल के लिए टल जाने से उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। निर्माता पक्ष की दलील है कि उनकी फिल्म तथ्यों पर आधारित है और समाज को आईना दिखाना उनका अधिकार है। वे इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बता रहे हैं।
विवाद और फिल्में: एक पुराना नाता
भारत में सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों का विवादों से घिरना कोई नई बात नहीं है। ‘The Kashmir Files’ से लेकर ‘Padmaavat’ और ‘Parzania’ तक, कई ऐसी फिल्में रही हैं जिन्हें रिलीज से पहले या बाद में भारी विरोध और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। ‘Udaipur Files’ भी इसी कड़ी का एक हिस्सा बन गई है।
इस तरह के मामले अक्सर दो मौलिक अधिकारों के बीच टकराव को दर्शाते हैं – एक तरफ फिल्म निर्माता का अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, और दूसरी तरफ राज्य की जिम्मेदारी कि वह अनुच्छेद 19(2) के तहत सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता को बनाए रखे। ‘Udaipur Files’ का मामला इस बहस को और गहरा करता है। सवाल यह है कि एक लोकतांत्रिक समाज में रचनात्मक स्वतंत्रता की सीमाएं क्या होनी चाहिए? क्या एक फिल्म, जो एक सच्ची और भयावह घटना पर आधारित है, उसे केवल इसलिए रोका जाना चाहिए क्योंकि उससे समाज के एक वर्ग की भावनाएं आहत हो सकती हैं या कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा है?
अब सभी की निगाहें केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। केंद्र सरकार का फैसला यह तय करेगा कि ‘Udaipur Files’ दर्शकों तक पहुंच पाएगी या नहीं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट का रुख इस मामले में एक महत्वपूर्ण नजीर स्थापित कर सकता है कि भविष्य में इस तरह की संवेदनशील फिल्मों के साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा। फिलहाल, ‘Udaipur Files’ का भविष्य अनिश्चितता के अंधेरे में है।