ढाई दशक का लंबा पीछा, आखिरकार खत्म हुआ खेल
नई दिल्ली। कानून के हाथ वाकई लंबे होते हैं, और यह बात एक बार फिर साबित हो गई है। भारत की प्रमुख जांच एजेंसी, सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) ने एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए 25 साल से ज्यादा समय से फरार चल रही एक भगोड़ी आर्थिक अपराधी (fugitive economic offender) को अमेरिका से दबोच लिया है। मोनिका कपूर नाम की यह महिला, जो एक इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट धोखाधड़ी मामले की मुख्य आरोपी थी, पिछले ढाई दशक से अमेरिकी धरती पर रहकर भारतीय कानून को चकमा दे रही थी। लेकिन अब उसका खेल खत्म हो चुका है।
CBI के सूत्रों के अनुसार, एक विशेष टीम ने मंगलवार को अमेरिकी अधिकारियों (US authorities) के साथ समन्वय स्थापित कर मोनिका कपूर को अपनी कस्टडी में ले लिया। यह एक लंबी और जटिल प्रत्यर्पण (extradition) प्रक्रिया का नतीजा है, जो CBI की अथक दृढ़ता को दर्शाती है। 25 साल का समय बहुत लंबा होता है – इतना कि शायद आरोपी भी मान बैठा हो कि अब उसे कोई नहीं पकड़ सकता। लेकिन CBI ने इस केस की फाइल कभी बंद नहीं की। लगातार takip और डिप्लोमैटिक चैनलों के माध्यम से दबाव बनाए रखा गया, जिसका परिणाम आज सबके सामने है। मोनिका कपूर को अब भारत वापस लाया जा रहा है, जहां उसे अपने किए गए अपराधों के लिए न्याय का सामना करना पड़ेगा। यह ऑपरेशन उन सभी भगोड़ों के लिए एक चेतावनी है, जो भारतीय खजाने को लूटकर विदेशों में ऐश की जिंदगी जी रहे हैं।
क्या था वो ‘इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट’ फ्रॉड का मामला?
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर मोनिका कपूर ने ऐसा कौन सा अपराध किया था, जिसके कारण CBI ने 25 साल तक उसका पीछा नहीं छोड़ा? सूत्रों के मुताबिक, यह मामला एक बड़े इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट फ्रॉड से जुड़ा है। हालांकि, इस घोटाले की सटीक रकम और इसके तौर-तरीकों के बारे में अभी विस्तृत जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन इस तरह के मामले अक्सर देश की अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचाते हैं।
आमतौर पर, इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट फ्रॉड में कई तरह की धांधलियां शामिल होती हैं, जैसे:
- ओवर-इन्वॉइसिंग (Over-invoicing): सामान की कीमत को कागजों पर कई गुना बढ़ाकर दिखाना और फिर उस बढ़ी हुई रकम को अवैध रूप से विदेश भेजना।
- फेक शिपमेंट्स (Fake Shipments): बिना कोई माल भेजे सिर्फ कागजात तैयार कर बैंकों से लोन लेना या सरकारी सब्सिडी का लाभ उठाना।
- ड्यूटी में चोरी (Duty Evasion): गलत जानकारी देकर इम्पोर्ट या एक्सपोर्ट ड्यूटी से बचना।
यह स्पष्ट है कि मोनिका कपूर का मामला काफी गंभीर था, इसी वजह से उसके खिलाफ एक मजबूत केस बनाया गया और रेड कॉर्नर नोटिस जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रक्रियाओं का सहारा लिया गया। तथ्य यह है कि वह मामला दर्ज होते ही देश छोड़कर भाग गई, यह इस बात की ओर इशारा करता है कि वह इस घोटाले में एक महत्वपूर्ण कड़ी थी। अब जब वह CBI की गिरफ्त में है, तो उम्मीद है कि इस पूरे रैकेट की परतें खुलेंगी और कई और छुपे हुए चेहरे बेनकाब होंगे।
CBI का ‘ऑपरेशन अमेरिका’: आसान नहीं थी राह
किसी भगोड़े को, खासकर अमेरिका जैसे देश से वापस लाना कोई बच्चों का खेल नहीं है। यह एक बेहद जटिल कानूनी और डिप्लोमैटिक प्रक्रिया है, जिसमें सालों लग जाते हैं। CBI का यह ‘ऑपरेशन अमेरिका’ उनकी टीम की पेशेवर क्षमता और दृढ़ता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस तरह के ऑपरेशन में कई चरण होते हैं:
- भगोड़े का पता लगाना: सबसे पहली चुनौती तो विदेश में छुपे भगोड़े का सटीक पता लगाना होता है।
- प्रत्यर्पण अनुरोध: एक बार पता लगने के बाद, भारत सरकार को अमेरिकी सरकार के पास सभी सबूतों के साथ एक औपचारिक प्रत्यर्पण अनुरोध भेजना पड़ता है।
- कानूनी लड़ाई: इसके बाद अमेरिका की अदालतों में एक लंबी कानूनी लड़ाई शुरू होती है, जहां भगोड़ा अक्सर खुद को बचाने के लिए मानवाधिकारों या स्थानीय कानूनों का सहारा लेता है।
- डिप्लोमैटिक दबाव: कानूनी प्रक्रिया के साथ-साथ, बैक-चैनल से डिप्लोमैटिक स्तर पर भी लगातार बातचीत और दबाव बनाए रखना पड़ता है।
CBI और अमेरिकी अधिकारियों के बीच का समन्वय इस ऑपरेशन की सफलता की कुंजी था। 25 साल की अवधि में भारत में सरकारें बदल गईं, अधिकारी बदल गए, लेकिन CBI का संकल्प नहीं बदला। यह जीत सिर्फ एक एजेंसी की नहीं, बल्कि भारत की न्याय प्रणाली के उस विश्वास की है, जो कहती है कि अपराधी चाहे कहीं भी छुप जाए, कानून का शिकंजा उस तक पहुंच ही जाएगा।
अब आगे क्या? भारत में इंतजार कर रहा है कानून
मोनिका कपूर की गिरफ्तारी के साथ ही एक अध्याय समाप्त हुआ है, लेकिन दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण अध्याय अब शुरू होगा। उसे भारत लाए जाने के बाद, कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा। उसे अदालत में पेश किया जाएगा, जहां उस पर लगे आरोपों पर सुनवाई होगी। हालांकि, 25 साल एक लंबा वक्त होता है। इस दौरान कई गवाह बूढ़े हो गए होंगे, कुछ सबूत धुंधले पड़ गए होंगे। यह CBI के लिए एक नई चुनौती होगी कि वह अदालत में अपना केस मजबूती से पेश करे।
लेकिन इस extradition का सांकेतिक महत्व बहुत बड़ा है। यह उन लोगों के लिए एक सीधा संदेश है, जो सोचते हैं कि वे भारतीय बैंकों को हजारों करोड़ का चूना लगाकर लंदन, अमेरिका या किसी कैरेबियन द्वीप पर आराम की जिंदगी जी सकते हैं। मोनिका कपूर की वापसी यह साबित करती है कि भारतीय एजेंसियां अब पहले से कहीं ज्यादा सक्षम और दृढ़ हैं, और वे आर्थिक अपराधियों को दुनिया के किसी भी कोने से खींचकर लाने का माद्दा रखती हैं। अब देखना यह है कि मोनिका कपूर का मामला कितनी तेजी से अपने अंजाम तक पहुंचता है और क्या यह भविष्य के लिए एक नजीर बन पाता है।