मुंबई। भारतीय क्रिकेट के गलियारों में अक्सर गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिए गए नायकों की कहानियां गूंजती हैं। एक ऐसी ही कहानी है अजिंक्य रहाणे की। भारत के पूर्व टेस्ट उप-कप्तान, जिनके शांत स्वभाव और चट्टानी डिफेंस ने विदेशी पिचों पर भारत को कई ऐतिहासिक जीत दिलाईं। आज वही रहाणे टीम इंडिया से दो साल के ‘वनवास’ पर हैं। लेकिन 37 साल की उम्र में, जब कई खिलाड़ी अपने जूते टांगने की सोचने लगते हैं, रहाणे ने एक बार फिर वापसी की हुंकार भरी है। उन्होंने न सिर्फ टेस्ट क्रिकेट खेलने की अपनी जलती हुई इच्छा को दुनिया के सामने रखा है, बल्कि एक ऐसा सनसनीखेज खुलासा किया है जिसने भारतीय क्रिकेट की चयन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रहाणे का दर्द छलक पड़ा है – उन्होंने कहा कि जब उन्होंने वापसी के लिए चयनकर्ताओं से बात करने की कोशिश की, तो उन्हें सामने से सिर्फ खामोशी मिली, कोई जवाब नहीं।
दो साल का ‘वनवास’ और एक अनसुनी पुकार
अजिंक्य रहाणे ने आखिरी बार भारत के लिए सफेद जर्सी लगभग दो साल पहले, 2023 में वेस्टइंडीज के खिलाफ पहनी थी। उस दो टेस्ट मैचों की सीरीज में उनके बल्ले से बड़ी पारियां नहीं निकलीं और चयनकर्ताओं ने बिना किसी संवाद के उन्हें टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया। तब से लेकर आज तक, रहाणे घरेलू क्रिकेट में पसीना बहा रहे हैं, इस उम्मीद में कि एक दिन उन्हें फिर से देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलेगा।
लेकिन हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में रहाणे ने जो खुलासा किया, वह चौंकाने वाला है। उन्होंने बताया, “मैंने वापसी को लेकर बातचीत करने की कोशिश की… लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिला (I got no response)।” यह बयान सीधे तौर पर अजीत अगरकर की अध्यक्षता वाली चयन समिति की कार्यशैली पर उंगली उठाता है। यह एक गंभीर आरोप है जो दिखाता है कि एक सीनियर खिलाड़ी, जो टीम का उप-कप्तान रह चुका है, उसके साथ संवाद की कितनी कमी है। यह सिर्फ एक खिलाड़ी को नजरअंदाज करने का मामला नहीं है, यह एक ऐसी व्यवस्था पर सवाल है जहां खिलाड़ियों को यह तक नहीं बताया जाता कि उन्हें क्यों बाहर किया गया है या उनकी वापसी के लिए क्या रोडमैप है। यह चुप्पी किसी भी खिलाड़ी के आत्मविश्वास को तोड़ने के लिए काफी है, लेकिन रहाणे अलग मिट्टी के बने हैं।
“मुझमें अभी भी बहुत क्रिकेट बाकी है” – रहाणे का अटूट विश्वास
चयनकर्ताओं की इस बेरुखी के बावजूद रहाणे का जज्बा कम नहीं हुआ है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, “मैं अभी भी टेस्ट क्रिकेट खेलना चाहता हूं (I still want to play Test cricket)। मैं रेड-बॉल क्रिकेट खेलने को लेकर बहुत जुनूनी हूं।” उन्होंने आगे कहा, “इस समय मैं अपने क्रिकेट का आनंद ले रहा हूं। मैं उन चीजों पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं जिन्हें मैं नियंत्रित कर सकता हूं (focusing on the controllables), और मैं भविष्य के बारे में ज्यादा नहीं सोचता।”
रहाणे के ये शब्द उनके मानसिक दृढ़ संकल्प को दर्शाते हैं। ‘कंट्रोलेबल्स’ पर ध्यान देने का मतलब है अपनी फिटनेस बनाए रखना, घरेलू क्रिकेट में लगातार रन बनाना और अपनी तकनीक पर काम करते रहना। वह चयनकर्ताओं के फैसले का इंतजार करने के बजाय अपने प्रदर्शन से जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। उनका यह रवैया युवा खिलाड़ियों के लिए एक सबक है। रहाणे ने कहा, “मुझे लगता है कि मुझमें अभी भी बहुत क्रिकेट बाकी है (I feel I have a lot of cricket left in me)।” यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि चयनकर्ताओं के लिए एक संदेश है कि उन्हें अभी खारिज न किया जाए।
क्या रहाणे के साथ हुई नाइंसाफी? सोशल मीडिया पर उठी आवाज
जैसे ही रहाणे का यह बयान सामने आया, सोशल मीडिया पर क्रिकेट फैंस ने अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी। कई लोगों ने चयन समिति के इस रवैये की आलोचना की। एक फेसबुक यूजर ने सवाल उठाया, “जब अन्य खिलाड़ियों को लगातार मौके दिए जाते हैं तो रहाणे को सिर्फ दो टेस्ट मैचों के बाद क्यों हटा दिया गया?” यह एक वाजिब सवाल है। भारतीय क्रिकेट में यह बहस हमेशा से रही है कि क्या सभी खिलाड़ियों को वापसी के लिए बराबर मौके दिए जाते हैं? क्या सीनियर खिलाड़ियों को उनके अनुभव का सम्मान मिलता है?
रहाणे का मामला इस बहस को और हवा देता है। ऑस्ट्रेलिया में ऐतिहासिक टेस्ट सीरीज जीत में कप्तानी करने वाले खिलाड़ी के साथ ऐसा व्यवहार कई पूर्व क्रिकेटरों और विशेषज्ञों को भी हैरान कर सकता है। यह चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को भी उजागर करता है। एक खिलाड़ी को यह जानने का पूरा हक है कि टीम में उसकी स्थिति क्या है। लेकिन रहाणे के मामले में, ऐसा लगता है कि संवाद के सारे दरवाजे बंद कर दिए गए हैं।
आगे की राह: क्या खुलेंगे Team India के दरवाज़े?
अब सवाल यह है कि रहाणे के लिए आगे की राह क्या है? क्या टीम इंडिया के दरवाजे उनके लिए फिर से खुलेंगे? इसका जवाब सिर्फ और सिर्फ उनके बल्ले से निकल सकता है। आगामी रणजी ट्रॉफी और अन्य घरेलू टूर्नामेंट उनके लिए एक बड़ा मंच होंगे। अगर वह वहां रनों का अंबार लगा देते हैं, तो चयनकर्ताओं के लिए उन्हें नजरअंदाज करना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
अजिंक्य रहाणे की यह लड़ाई सिर्फ टीम में वापसी की नहीं है, यह सम्मान की लड़ाई है। यह एक ऐसे योद्धा की लड़ाई है जो यह मानने को तैयार नहीं है कि उसका समय समाप्त हो गया है। उन्होंने अपनी बात कहकर गेंद अब चयनकर्ताओं के पाले में डाल दी है। अब देखना यह होगा कि क्या अजीत अगरकर और उनकी टीम इस अनुभवी खिलाड़ी के जुनून और प्रदर्शन को एक और मौका देती है, या फिर रहाणे की यह पुकार भी भारतीय क्रिकेट के शोर में कहीं दब कर रह जाएगी।