सड़कों पर उतरे Actor Vijay, Custodial Death पर सरकार से मांगे जवाब, Chennai में ‘Thalapathy’ का हल्ला-बोल!

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चेन्नई की सड़कों पर रविवार को एक ऐसा जनसैलाब उमड़ा, जिसकी गूंज दूर तक सुनाई दी। यह किसी फिल्म का सीन नहीं था, और भीड़ में सबसे आगे चल रहा शख्स कोई किरदार नहीं, बल्कि एक नई राजनीतिक हकीकत था। दक्षिण भारत के सुपरस्टार, ‘Thalapathy’ विजय, जब अपनी पार्टी ‘तमिझग वेट्ट्री कझगम’ (TVK) के झंडे तले हजारों समर्थकों के साथ सड़कों पर उतरे, तो यह साफ हो गया कि वो अब सिर्फ एक एक्टर नहीं, बल्कि एक ऐसे नेता हैं जो सत्ता को सीधी चुनौती देने से नहीं डरते। मौका था 27 वर्षीय सुरक्षा गार्ड अजित कुमार की कथित हिरासत में मौत के खिलाफ न्याय की मांग का। इस एक प्रदर्शन ने न सिर्फ तमिलनाडु की राजनीति में भूचाल ला दिया है, बल्कि सरकार और पुलिस प्रशासन को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।

## कौन था अजित कुमार? क्या है पूरा मामला?

इस पूरे आक्रोश और प्रदर्शन के केंद्र में एक 27 वर्षीय युवक की दुखद कहानी है, जिसका नाम अजित कुमार (B. Ajithkumar) था। अजित, शिवगंगा जिले के प्रसिद्ध मदापुरम मंदिर में एक प्राइवेट सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसे पुलिस ने किसी मामले में हिरासत में लिया था, जिसके बाद उसकी मौत हो गई। परिवार और स्थानीय लोगों का आरोप है कि अजित की मौत पुलिस की बर्बरता के कारण हुई, यानी यह एक ‘custodial death’ का मामला है।

हालांकि, मौत किन परिस्थितियों में हुई, उसे किस आरोप में हिरासत में लिया गया था, और मौत की असली वजह क्या थी, इन सवालों पर पुलिस प्रशासन ने अभी तक कोई आधिकारिक और संतोषजनक बयान जारी नहीं किया है। जानकारी का यही अभाव और पारदर्शिता की कमी जनता के गुस्से को और भड़का रही है। यह मामला और भी उलझ जाता है जब कुछ पुरानी रिपोर्ट्स में TVK द्वारा थिरु भुवनम नामक एक अन्य व्यक्ति की हिरासत में मौत के लिए प्रदर्शन की अनुमति मांगने का जिक्र आता है। यह स्पष्ट नहीं है कि यह दो अलग-अलग मामले हैं या रिपोर्टिंग में कोई त्रुटि, लेकिन यह भ्रम अधिकारियों की जवाबदेही पर और भी गंभीर सवाल खड़े करता है। अजित कुमार के मामले ने अब तूल पकड़ लिया है, और विजय के इस मुद्दे को उठाने के बाद, यह सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे राज्य की लड़ाई बन गई है।

## ‘Thalapathy’ का Political Power-Show: TVK का पहला बड़ा दांव

यह प्रदर्शन सिर्फ न्याय की मांग नहीं, बल्कि विजय की नई-नवेली राजनीतिक पार्टी TVK का एक बड़ा ‘power-show’ भी है। राजनीति में प्रवेश की घोषणा के बाद यह पहला मौका है जब विजय ने इतने बड़े पैमाने पर किसी जमीनी मुद्दे को लेकर सरकार को घेरा है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि उनकी राजनीति सिर्फ बयानों और सोशल मीडिया तक सीमित नहीं रहेगी। उन्होंने एक ऐसा संवेदनशील मुद्दा चुना है जो सीधे आम जनता की भावनाओं से जुड़ा है।

TVK ने इस प्रदर्शन के लिए बाकायदा कानूनी रास्ता अपनाया और High Court (HC) से इजाजत भी मांगी थी, जो यह दर्शाता है कि यह एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। विजय अपने स्टारडम का इस्तेमाल राजनीतिक पूंजी के रूप में कर रहे हैं। उनके एक आह्वान पर हजारों लोगों का सड़कों पर उतर आना, यह उनकी लोकप्रियता और जनता के साथ उनके जुड़ाव को दिखाता है। इस प्रदर्शन के जरिए, विजय ने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है जो कमजोर और पीड़ितों की आवाज बनने को तैयार है। यह TVK के लिए एक लिटमस टेस्ट की तरह है, और जिस तरह का समर्थन उन्हें मिला है, उसने निश्चित रूप से तमिलनाडु के स्थापित राजनीतिक दलों की नींद उड़ा दी है।

## सरकार और पुलिस पर बढ़ता दबाव

एक फिल्म स्टार का कद जब एक राजनीतिक नेता के कद के साथ मिल जाता है, तो उसकी आवाज का वजन कई गुना बढ़ जाता है। विजय के सड़कों पर उतरने से अजित कुमार का मामला जो शायद एक स्थानीय खबर बनकर रह जाता, अब National Headline बन गया है। मीडिया कवरेज, सोशल मीडिया पर बहस और विपक्षी दलों के सवालों ने राज्य सरकार और पुलिस विभाग पर भारी दबाव बना दिया है।

अब वे इस मामले को आसानी से रफा-दफा नहीं कर सकते। उन्हें जनता को जवाब देना होगा। उन्हें एक निष्पक्ष और पारदर्शी जांच सुनिश्चित करनी होगी। विजय और TVK ने मांग की है कि दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और पीड़ित परिवार को न्याय मिले। इस हाई-प्रोफाइल विरोध ने मामले की जांच की निगरानी बढ़ा दी है, और किसी भी तरह की लापरवाही या लीपापोती अब संभव नहीं होगी। यह घटना तमिलनाडु प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। उनकी प्रतिक्रिया यह तय करेगी कि जनता का कानून-व्यवस्था में विश्वास बना रहता है या नहीं।

## Custodial Death: तमिलनाडु का एक नासूर

अजित कुमार की मौत का मामला कोई अकेली घटना नहीं है। यह तमिलनाडु और पूरे भारत में हिरासत में होने वाली मौतों के उस गंभीर मुद्दे की एक और दुखद कड़ी है जो समय-समय पर समाज को झकझोरता रहता है। कई मानवाधिकार संगठन वर्षों से इस मुद्दे पर आवाज उठाते रहे हैं। अक्सर देखा गया है कि ऐसे मामलों में गरीब और हाशिए पर मौजूद लोग ही शिकार बनते हैं, जिनकी कोई सुनने वाला नहीं होता।

विजय ने इस प्रदर्शन के जरिए सिर्फ अजित कुमार के लिए न्याय नहीं मांगा है, बल्कि उन्होंने उस पूरे सिस्टम पर सवाल उठाया है जिसके तहत पुलिस हिरासत एक ‘death sentence’ में बदल जाती है। उन्होंने इस एक मामले को एक बड़े सामाजिक अन्याय के प्रतीक के रूप में पेश किया है। इससे जनता खुद को जोड़ पा रही है क्योंकि यह उनके अपने डर और असुरक्षा की भावना को आवाज देता है। इस प्रदर्शन ने हिरासत में सुधार (custodial reforms) और पुलिस जवाबदेही (police accountability) की बहस को फिर से जिंदा कर दिया है।

निष्कर्ष रूप में, विजय का यह प्रदर्शन तमिलनाडु की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। इसने एक एक्टर को एक जन-नेता के रूप में स्थापित किया है और एक नए राजनीतिक दल के इरादे स्पष्ट कर दिए हैं। अब गेंद सरकार के पाले में है। क्या अजित कुमार के परिवार को न्याय मिलेगा? क्या यह प्रदर्शन व्यवस्था में कोई स्थायी बदलाव ला पाएगा? इन सवालों के जवाब भविष्य में मिलेंगे, लेकिन एक बात तय है – ‘Thalapathy’ विजय ने तमिलनाडु की राजनीति में एक ज़ोरदार दस्तक दे दी है, और उनकी आवाज़ को अब अनदेखा नहीं किया जा सकता।

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