खुले फाटक ने ली 3 मासूमों की जान: कुड्डालोर ट्रेन हादसे में गेटकीपर की लापरवाही बनी मौत का कारण, रेलवे पर उठे गंभीर सवाल

This Image is generate by Ai

कुड्डालोर में मौत की पटरी: खुले फाटक से गुजरी स्कूल वैन, ट्रेन ने रौंदा

कुड्डालोर, तमिलनाडु। मंगलवार, 8 जुलाई 2025 की वह सुबह हमेशा के लिए सेम्मामकुप्पम इलाके के लिए एक काले दिन के रूप में दर्ज हो गई। रोज की तरह, बच्चे अपने बस्ते और किताबों के साथ स्कूल जाने के लिए निकले थे, उनके चेहरों पर मुस्कान थी और आंखों में भविष्य के सपने। लेकिन उन्हें क्या पता था कि मौत एक तेज रफ्तार ट्रेन की शक्ल में पटरी पर उनका इंतजार कर रही थी। उनकी स्कूल वैन जैसे ही रेलवे क्रॉसिंग पर पहुंची, एक तेज रफ्तार ट्रेन ने उसे रौंद दिया।

टक्कर इतनी भीषण थी कि वैन के परखच्चे उड़ गए। चीख-पुकार और हाहाकार के बीच, मासूम जिंदगियां पलक झपकते ही खत्म हो गईं। घटनास्थल का मंजर दिल दहला देने वाला था। खून से लथपथ स्कूल बैग, फटी हुई किताबें, मासूमों के टिफिन बॉक्स और पहचान पत्र चारों ओर बिखरे पड़े थे। एक बच्चे का क्षत-विक्षत शव पटरियों के पास पड़ा था। इस हादसे में तीन बच्चों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया, जिनमें भाई-बहन चारुमथी और चेझियान भी शामिल थे। कई अन्य बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए, जिन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहाँ वे अभी भी जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। यह सिर्फ एक दुर्घटना नहीं थी; यह एक ऐसी त्रासदी थी जिसे रोका जा सकता था, एक ऐसा अपराध जिसके लिए किसी को तो जवाब देना ही होगा।

जांच में हुआ सनसनीखेज खुलासा: ‘Mechanical Failure’ नहीं, इंसानी भूल थी वजह

हादसे के तुरंत बाद, जैसा कि अक्सर होता है, रेलवे ने अपनी शुरुआती रिपोर्ट में किसी तकनीकी खराबी या ‘mechanical failure’ की ओर इशारा करने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही जांच आगे बढ़ी, एक चौंकाने वाली और शर्मनाक सच्चाई सामने आई। यह कोई तकनीकी खराबी नहीं, बल्कि एक इंसान की घोर, अक्षम्य लापरवाही थी। जांचकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा है कि यह हादसा पूरी तरह से गेटकीपर की लापरवाही (gatekeeper’s negligence) का नतीजा था।

रिपोर्ट के अनुसार, जब तेज रफ्तार ट्रेन क्रॉसिंग के पास आ रही थी, तब रेलवे का फाटक बंद होना चाहिए था। लेकिन गेटकीपर ने अपनी ड्यूटी नहीं निभाई और फाटक खुला छोड़ दिया। स्कूल वैन के ड्राइवर ने फाटक खुला देख कर समझा कि लाइन क्लियर है और उसने वैन आगे बढ़ा दी। उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह अपने साथ-साथ कई मासूम बच्चों को भी मौत के मुंह में धकेल रहा है। इस सनसनीखेज खुलासे ने रेलवे प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। आरोपी गेटकीपर को तुरंत निलंबित कर दिया गया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या एक कर्मचारी को suspend कर देना काफी है? क्या यह उस सिस्टम की विफलता नहीं है जो ऐसे लापरवाह कर्मचारियों को इतनी महत्वपूर्ण जगहों पर तैनात करता है?

‘गेट खुला था, ट्रेन ने पीछे से टक्कर मारी’ – चश्मदीद का दर्दनाक बयान

जांच रिपोर्ट के दावों को इस हादसे में ज़िंदा बचे एक छात्र के बयान से और भी बल मिलता है। अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए, उस मासूम ने कांपती हुई आवाज में उस खौफनाक मंजर को बयां किया। उसने बताया, “हम स्कूल जा रहे थे। जब हमारी वैन पटरी पार कर रही थी, तो गेट खुला हुआ था। हमें कोई ट्रेन आती हुई नहीं दिखी। अचानक, ट्रेन ने हमें पीछे से टक्कर मार दी। सब कुछ सेकंडों में हो गया।”

यह बयान सीधे तौर पर गेटकीपर की लापरवाही की ओर इशारा करता है और रेलवे के शुरुआती दावों की पोल खोलता है। यह उस भयावह पल की तस्वीर पेश करता है जब बच्चों से भरी एक वैन एक खुली क्रॉसिंग पर फंस गई थी, और उन्हें बचाने वाला कोई नहीं था। इस बयान ने स्थानीय लोगों के गुस्से को और भड़का दिया है, जो इस त्रासदी के लिए सीधे तौर पर रेलवे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

नियमों की अनदेखी या सिस्टम की नाकामी? उठ रहे गंभीर सवाल

यह त्रासदी सिर्फ एक गेटकीपर की गलती नहीं है, बल्कि यह उस गहरे systemic rot का प्रतीक है जिसकी ओर कई बार इशारा किया गया है। एक प्रतिष्ठित मीडिया कमेंट्री में इस घटना को ‘नियमों और विनियमों की अवहेलना करने के भारतीय तरीके का प्रतीक’ (‘symbolic of the Indian way of defying rules and regulations’) बताया गया है, जो बेहद कड़वा लेकिन सच्चा लगता है।

इस घटना ने एक राजनीतिक बहस भी छेड़ दी है। विपक्षी दल DMK ने रेलवे द्वारा गैर-स्थानीय कर्मचारियों (non-native staff) की तैनाती पर सवाल उठाए हैं, जिनका तर्क है कि स्थानीय भाषा और भूगोल से अपरिचित कर्मचारी ऐसी स्थितियों में प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाते हैं। हालांकि रेलवे ने इन आरोपों का जवाब दिया है, लेकिन यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि क्या कर्मचारियों की भर्ती और प्रशिक्षण प्रक्रिया में कोई कमी है?

यह हादसा भारतीय रेलवे के सामने कई असहज सवाल खड़े करता है:
* क्या हमारे रेलवे क्रॉसिंग, विशेषकर स्कूल मार्गों पर, पर्याप्त रूप से सुरक्षित हैं?
* गेटकीपर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर तैनात कर्मचारियों के लिए training और monitoring का क्या प्रोटोकॉल है?
* क्या टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके ऐसी मानवीय भूलों को रोका नहीं जा सकता?
* जवाबदेही (accountability) का तंत्र इतना कमजोर क्यों है कि ऐसी त्रासदियों के बाद केवल छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई करके मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है?

एक गेटकीपर को निलंबित करना न्याय नहीं है; यह केवल पहला कदम है। असली न्याय तब होगा जब भारतीय रेलवे इस घटना से सबक ले और यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में किसी भी बच्चे को स्कूल जाते समय अपनी जान इस तरह न गंवानी पड़े। जब तक सिस्टम में बैठे बड़े अधिकारी अपनी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करते, तब तक कुड्डालोर जैसी त्रासदियां होती रहेंगी और मासूम जिंदगियां मौत की पटरी पर रौंदी जाती रहेंगी।

Leave a Comment