कला, व्यंग्य और कानून का टकराव: सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ पर कार्टूनिस्ट
नई दिल्ली। क्या एक कार्टून किसी कलाकार की गिरफ्तारी का कारण बन सकता है? क्या व्यंग्य की स्याही इतनी तीखी हो सकती है कि वह कानूनी धाराओं में उलझ जाए? यह सवाल एक बार फिर देश की सबसे बड़ी अदालत, सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ पर आ खड़ा हुआ है। मामला इंदौर के एक कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय से जुड़ा है, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर कथित रूप से ‘आपत्तिजनक’ कार्टून बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के आरोप में FIR का सामना करना पड़ रहा है। गिरफ्तारी की तलवार सिर पर लटक रही है और हाई कोर्ट से राहत की उम्मीद टूट चुकी है। ऐसे में, हेमंत मालवीय ने अब न्याय और अपनी आज़ादी के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है, और कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए हामी भर दी है।
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की अग्रिम जमानत का नहीं है। यह भारत के लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी, राजनीतिक व्यंग्य की सीमाओं और ‘आहत भावनाओं’ के बढ़ते चलन पर एक बड़ी बहस छेड़ता है। एक तरफ एक कलाकार का अपनी कला के ज़रिए விமர்சன करने का अधिकार है, तो दूसरी तरफ देश के प्रधानमंत्री और एक बड़े संगठन की गरिमा का सवाल। अब सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि इन दोनों के बीच की ‘लक्ष्मण रेखा’ कहाँ खींची जानी चाहिए।
इंदौर से दिल्ली तक: एक कार्टूनिस्ट की कानूनी लड़ाई का सफ़र
इस पूरे मामले की शुरुआत मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से हुई। कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय के खिलाफ इंदौर के लसूडिया पुलिस स्टेशन में एक FIR दर्ज की गई। आरोप था कि उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और RSS को लेकर कुछ ऐसे कार्टून और कैरिकेचर पोस्ट किए हैं जो ‘आपत्तिजनक’ (objectionable) हैं। FIR दर्ज होते ही, मालवीय पर गिरफ्तारी का खतरा मंडराने लगा।
इस गिरफ्तारी से बचने के लिए, उन्होंने कानून के तहत अग्रिम जमानत (anticipatory bail) के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। अग्रिम जमानत का मतलब है कि अगर अदालत राहत दे दे, तो पुलिस आरोपी को जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं कर सकती। लेकिन 3 जुलाई को, हाई कोर्ट ने हेमंत मालवीय को एक बड़ा झटका देते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद मालवीय के पास गिरफ्तारी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था।
एक कलाकार के लिए यह एक मुश्किल लड़ाई थी। एक तरफ कानूनी प्रक्रिया का दबाव और दूसरी तरफ अपने काम को लेकर खड़े हुए सवाल। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और देश की सर्वोच्च अदालत में गुहार लगाई। शुक्रवार, 11 जुलाई को, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए उनकी याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की। यह मालवीय के लिए एक बड़ी राहत है, क्योंकि अब उनकी किस्मत का फैसला वो अदालत करेगी जो संविधान और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की अंतिम संरक्षक है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी vs. ‘आपत्तिजनक’ का पैमाना
इस case का सबसे बड़ा और अनसुलझा सवाल यह है कि ‘आपत्तिजनक’ क्या है? कानून में इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। एक व्यक्ति के लिए जो तीखा व्यंग्य है, वह दूसरे के लिए अपमान हो सकता है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में, सरकारों, नेताओं और संगठनों की आलोचना और उन पर व्यंग्य करना एक सामान्य और ज़रूरी प्रक्रिया मानी जाती है। कार्टूनिस्ट हमेशा से सत्ता पर सवाल उठाने और समाज को आईना दिखाने का काम करते रहे हैं।
लेकिन हाल के वर्षों में, भारत में एक नया ट्रेंड देखने को मिला है, जहाँ कलाकारों, कॉमेडियनों और लेखकों के खिलाफ उनकी कला के लिए FIR दर्ज कराना आम होता जा रहा है। ‘धार्मिक या राजनीतिक भावनाएं आहत’ होने की शिकायतें बढ़ रही हैं, जिससे रचनात्मक स्वतंत्रता (creative freedom) पर एक तरह का दबाव बन रहा है। हेमंत मालवीय का मामला इसी बड़ी तस्वीर का एक हिस्सा है। उनके कार्टून में ऐसा क्या था जिसे ‘आपत्तिजनक’ माना गया, यह अभी तक सार्वजनिक डोमेन में स्पष्ट नहीं है। लेकिन यह मामला इस बहस को ज़रूर हवा देगा कि क्या आलोचना को सीधे तौर पर अपराध मान लिया जाना चाहिए?
संविधान का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, लेकिन इस पर कुछ ‘reasonable restrictions’ यानी वाजिब प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट को यह देखना होगा कि क्या मालवीय के कार्टून इन प्रतिबंधों के दायरे में आते हैं, या यह उनके मौलिक अधिकार का एक वैध प्रयोग था।
अब आगे क्या? सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी निगाहें
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हेमंत मालवीय की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करना इस मामले का पहला और महत्वपूर्ण पड़ाव है। अब अदालत दोनों पक्षों की दलीलों को सुनेगी। मालवीय के वकील यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि उनके कार्टून व्यंग्य की श्रेणी में आते हैं और उनका इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना या समाज में वैमनस्य फैलाना नहीं था। वहीं, अभियोजन पक्ष यह साबित करने की कोशिश करेगा कि ये कार्टून अपमानजनक और कानून का उल्लंघन करते हैं।
इस सुनवाई का नतीजा जो भी हो, उसका असर दूर तक जाएगा। अगर सुप्रीम कोर्ट मालवीय को राहत देती है, तो यह देश भर के उन कलाकारों के लिए एक बड़ा मनोबल बढ़ाने वाला फैसला होगा जो सत्ता पर सवाल उठाने से डरते हैं। यह एक संदेश देगा कि रचनात्मक आलोचना लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है। वहीं, अगर अदालत याचिका खारिज करती है, तो यह राजनीतिक व्यंग्य की सीमाओं को और भी संकुचित कर सकता है।
फिलहाल, हेमंत मालवीय और उनके जैसे कई अन्य कलाकारों की नज़रें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। यह सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी या ज़मानत का सवाल नहीं है, यह उस स्याही की ताकत का सवाल है जो लोकतंत्र को ज़िंदा रखती है।