HC का हथौड़ा: ‘दागी’ शिक्षकों के लिए दरवाज़े बंद, ममता सरकार की याचिका खारिज
कोलकाता। पश्चिम बंगाल के इतिहास के सबसे बड़े और शर्मनाक ‘शिक्षक भर्ती घोटाले’ में कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसे न्याय और योग्यता की जीत के रूप में देखा जा रहा है। एक करारे झटके में, हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने ममता बनर्जी सरकार और पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (WBSSC) की उस याचिका को कूड़ेदान में फेंक दिया, जिसमें घोटाले में फंसे ‘दागी’ उम्मीदवारों को नई भर्ती परीक्षा में शामिल होने की इजाज़त मांगी गई थी। कोर्ट ने दो टूक कह दिया है – जिन्होंने सिस्टम को धोखा दिया, उन्हें दूसरा मौका नहीं मिल सकता।
यह फैसला सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं है, यह उस सड़ चुके सिस्टम पर एक सर्जिकल स्ट्राइक है, जिसने हज़ारों योग्य और होनहार उम्मीदवारों के सपनों को चंद पैसों के लिए बेच दिया। यह ममता सरकार के लिए एक बड़ा ‘setback’ है, जिसने इन ‘tainted candidates’ को फिर से सिस्टम में लाने की कोशिश की थी, लेकिन अदालत ने भ्रष्टाचार के आगे एक मज़बूत दीवार खड़ी कर दी है।
सिंगल जज की लकीर को डिवीजन बेंच ने किया और गहरा
इस पूरे मामले की नींव जस्टिस सौगात भट्टाचार्य की सिंगल बेंच ने रखी थी। उन्होंने 8 जुलाई को एक साहसिक फैसला सुनाते हुए आदेश दिया था कि जिन उम्मीदवारों की पहचान घोटाले में अवैध रूप से नौकरी पाने वालों के रूप में हुई है, उन्हें किसी भी कीमत पर नई और निष्पक्ष भर्ती प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनने दिया जाएगा। जस्टिस भट्टाचार्य ने सरकार और SSC से एक तीखा सवाल भी पूछा था, “आखिर ऐसा कोई स्पष्ट नियम क्यों नहीं है जो इन दागी उम्मीदवारों को दोबारा आवेदन करने से सीधे तौर पर रोकता हो?”
इस फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार और SSC ने तुरंत एक डिवीजन बेंच का दरवाज़ा खटखटाया। उनकी दलील थी कि इन उम्मीदवारों को एक और मौका मिलना चाहिए। लेकिन 10 जुलाई को, डिवीजन बेंच ने सिंगल जज के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। कोर्ट ने न केवल सरकार की appeal को खारिज किया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि अगर इन ‘दागी’ उम्मीदवारों में से किसी ने नई परीक्षा के लिए आवेदन किया है, तो उसे तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया जाए। अदालत का संदेश साफ़ था – भ्रष्टाचार के लिए ‘zero tolerance’ और योग्यता से कोई समझौता नहीं।
क्या है बंगाल का वो शर्मनाक ‘Cash for Jobs’ घोटाला?
यह पूरा मामला उस ‘कैश फॉर जॉब्स’ घोटाले से जुड़ा है, जिसने पश्चिम बंगाल की शिक्षा व्यवस्था की नींव हिलाकर रख दी थी। यह एक ऐसा संगठित घोटाला था, जिसमें आरोप है कि स्कूल सेवा आयोग (SSC) के माध्यम से होने वाली शिक्षकों और ग्रुप-सी, ग्रुप-डी कर्मचारियों की भर्तियों में बड़े पैमाने पर धांधली हुई।
OMR शीट्स में हेरफेर किया गया, अंकों को बदला गया और अयोग्य उम्मीदवारों को लाखों रुपये लेकर नौकरियां बेची गईं। इस प्रक्रिया में हज़ारों योग्य उम्मीदवार, जिन्होंने दिन-रात मेहनत की थी, मेरिट लिस्ट से बाहर हो गए और उनकी जगह पैसे और पहुँच वाले ‘अयोग्य’ लोग शिक्षक बन बैठे। यह घोटाला राज्य के लिए एक बड़ा कलंक है, जिसकी जांच CBI और ED जैसी केंद्रीय एजेंसियां कर रही हैं और इसमें कई बड़े नेताओं और अधिकारियों के नाम भी सामने आए हैं। यह फैसला उन्हीं पीड़ित योग्य उम्मीदवारों के लिए न्याय की पहली किरण है, जिनकी ज़िंदगी इस घोटाले ने बर्बाद कर दी।
ममता सरकार के लिए बड़ा झटका, साख पर सवाल
कलकत्ता हाई कोर्ट का यह फैसला ममता बनर्जी सरकार के लिए एक बड़ी कानूनी और राजनीतिक हार है। सरकार और उसके भर्ती आयोग (SSC) का इन दागी उम्मीदवारों को बचाने के लिए कोर्ट जाना, अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। आलोचकों का कहना है कि सरकार उन लोगों को बचाने की कोशिश कर रही थी जो एक भ्रष्ट सिस्टम का हिस्सा थे। अदालत द्वारा उनकी याचिका को इस तरह खारिज किया जाना सरकार की मंशा और उसकी साख पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
यह फैसला दर्शाता है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका के किसी भी ऐसे कदम को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता हो या उसे किसी भी तरह से संरक्षण देता हो। यह एक संदेश है कि सिस्टम को साफ करने की ज़िम्मेदारी जब सरकार नहीं निभाएगी, तो अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ेगा। इस फैसले के बाद, सरकार पर एक निष्पक्ष और पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया सुनिश्चित करने का दबाव और भी बढ़ गया है।
आगे का रास्ता: न्याय और पारदर्शिता की ओर एक कदम
इस फैसले के बाद अब गेंद पूरी तरह से पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग के पाले में है। उसे अब एक ऐसी भर्ती प्रक्रिया आयोजित करनी होगी जो पूरी तरह से दाग-मुक्त हो। अदालत ने एक ‘Lakshman Rekha’ खींच दी है, जिसके भीतर रहकर ही अब भर्ती की जा सकती है। ‘दागी’ उम्मीदवारों के बाहर होने से उन हज़ारों योग्य उम्मीदवारों के लिए एक नई उम्मीद जगी है, जो सालों से न्याय का इंतज़ार कर रहे थे।
यह फैसला बंगाल में सरकारी नौकरियों की तैयारी कर रहे युवाओं के मन में सिस्टम के प्रति कुछ हद तक विश्वास बहाल करने का काम करेगा। यह बताता है कि भले ही भ्रष्टाचार कितना भी गहरा क्यों न हो, न्याय का हथौड़ा जब चलता है, तो बड़े-बड़े किले ढह जाते हैं। अब देखना यह होगा कि पश्चिम बंगाल सरकार और उसका भर्ती आयोग इस आदेश का कितनी ईमानदारी से पालन करते हैं और राज्य की शिक्षा व्यवस्था को इस गहरे दाग से उबारने के लिए क्या कदम उठाते हैं।