क्या है ये पूरा शर्मनाक मामला?
महाराष्ट्र के ठाणे जिले के शाहपुर इलाके में स्थित एक स्कूल, जिसे ज्ञान का मंदिर कहा जाना चाहिए, एक ऐसी घटना का गवाह बना जिसने हर किसी की रूह कंपा दी है। यह मामला सिर्फ एक गलती नहीं, बल्कि बच्चों के भरोसे, उनकी इज़्ज़त और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर एक brutal attack है। घटना की शुरुआत तब हुई जब स्कूल के एक स्टाफ सदस्य ने लड़कियों के वॉशरूम में खून के कुछ धब्बे देखे। इसके बाद जो हुआ, वो किसी भी सभ्य समाज के लिए कल्पना से परे है।
आरोपों के मुताबिक, वॉशरूम में खून के धब्बे मिलने के बाद, स्कूल की महिला प्रिंसिपल और कुछ अन्य स्टाफ सदस्यों ने यह पता लगाने के लिए एक घिनौना तरीका अपनाया कि कौन सी छात्रा menstruating है, यानी किसके पीरियड्स चल रहे हैं। उन्होंने 5वीं क्लास से लेकर 10वीं क्लास तक की बच्चियों को एक लाइन में खड़ा किया और फिर एक-एक करके उनके कपड़े उतरवाए। यह सिर्फ एक जांच नहीं थी; यह उन मासूम बच्चियों का सरेआम अपमान था, उनकी गरिमा पर एक क्रूर प्रहार था। इन बच्चियों की उम्र 10 से 16 साल के बीच है – एक ऐसी उम्र जहाँ वो अपने शरीर में हो रहे बदलावों को समझने की कोशिश कर रही होती हैं। ऐसे में स्कूल, जो उनका दूसरा घर होना चाहिए, वहीं उन्हें इस तरह की जिल्लत झेलनी पड़ी।
यह कार्रवाई न केवल गैर-कानूनी और अमानवीय है, बल्कि यह भी दिखाती है कि menstruation को लेकर हमारे समाज में, यहाँ तक कि educational institutions में भी कितनी ज़्यादा अज्ञानता और असंवेदनशीलता है। एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया को अपराध की तरह देखा गया और उसकी जांच के लिए बच्चियों को इस दर्दनाक अनुभव से गुज़रना पड़ा।
पेरेंट्स का गुस्सा और Police का Action
जब इन डरी-सहमी बच्चियों ने घर जाकर अपने माता-पिता को इस भयानक आपबीती के बारे में बताया, तो पेरेंट्स का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। अगले ही दिन, बड़ी संख्या में पेरेंट्स स्कूल के बाहर इकट्ठा हो गए और जमकर विरोध प्रदर्शन किया। उनका आक्रोश जायज़ था। जिस स्कूल पर उन्होंने अपने बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी थी, उसी स्कूल ने उनकी बेटियों की इज़्ज़त को तार-तार कर दिया था।
मामले की गंभीरता को देखते हुए और पेरेंट्स के बढ़ते दबाव के बाद, ठाणे ग्रामीण पुलिस ने तुरंत action लिया। पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज की और जांच शुरू की। शुरुआती जांच के बाद, पुलिस ने स्कूल की महिला प्रिंसिपल और एक महिला चपरासी (peon) को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस अधिकारियों ने पुष्टि की है कि इस शर्मनाक घटना में शामिल कुल चार स्टाफ सदस्यों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
यह गिरफ्तारियां उन पेरेंट्स के लिए एक छोटी सी राहत हैं, लेकिन उन बच्चियों के मन पर जो घाव लगा है, वो शायद ही कभी भर पाएगा। यह घटना एक बड़ा सवाल खड़ा करती है – क्या हमारे स्कूलों में बच्चे सुरक्षित हैं? क्या टीचर्स और स्टाफ को बच्चों के psychological well-being के बारे में कोई training दी जाती है?
इंसानियत पर सवाल: Education का मंदिर या सजा का घर?
भारत में, जहाँ एक तरफ ‘ऋतु कला संस्कार’ जैसी परंपराएं हैं, जो एक लड़की के पहले मासिक धर्म को एक उत्सव के रूप में मनाती हैं और उसे बचपन से किशोरावस्था में प्रवेश का प्रतीक मानती हैं, वहीं दूसरी तरफ ठाणे जैसी घटनाएं हमें आईना दिखाती हैं। यह कैसा विरोधाभास है कि एक तरफ हम menstruation को celebrate करते हैं, और दूसरी तरफ इसे एक ‘गंदगी’ या ‘अपराध’ मानकर बच्चियों को अपमानित करते हैं?
स्कूल को ज्ञान का मंदिर कहा जाता है, लेकिन इस मामले में यह एक सजा का घर बन गया। प्रिंसिपल और स्टाफ का यह कृत्य केवल एक जांच नहीं था, बल्कि power का एक घिनौना प्रदर्शन था। उन्होंने उन बच्चियों को यह महसूस कराया कि उनके शरीर में हो रही एक सामान्य प्रक्रिया कुछ गलत है, कुछ छिपाने वाली चीज़ है। इस incident का बच्चियों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत गहरा और long-lasting असर पड़ेगा। डर, शर्म, गुस्सा और भरोसे का टूटना – ये कुछ ऐसी भावनाएं हैं जिनसे वो शायद लंबे समय तक जूझती रहेंगी।
यह घटना education system की एक बड़ी विफलता को उजागर करती है। स्कूलों को comprehensive sexuality education पर ज़ोर देना चाहिए, जहाँ बच्चों को और साथ ही स्टाफ को भी menstruation जैसी शारीरिक प्रक्रियाओं के बारे में वैज्ञानिक और संवेदनशील तरीके से सिखाया जाए। जब तक हम पीरियड्स को एक taboo मानते रहेंगे, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।
देश भर में आक्रोश: Social Media पर उठी न्याय की मांग
जैसे ही यह खबर सामने आई, social media पर आग की तरह फ़ैल गई। X (formerly Twitter), Facebook और Instagram पर लोगों ने इस घटना की कड़ी निंदा की। #ShameOnThaneSchool जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। आम जनता से लेकर celebrities और social activists तक, हर किसी ने इस घटना पर अपना गुस्सा ज़ाहिर किया और बच्चियों के लिए न्याय की मांग की।
यह nationwide outrage दिखाता है कि लोग अब ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं। लोगों का कहना है कि सिर्फ गिरफ्तारियां काफी नहीं हैं। दोषियों को ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए जो भविष्य में किसी भी स्कूल में ऐसी हरकत करने की सोचने से पहले लोगों की रूह कंपा दे। इसके साथ ही, स्कूलों के लिए सख्त guidelines बनाने की मांग भी तेज़ हो गई है, ताकि बच्चों की safety और dignity को सुनिश्चित किया जा सके।
यह मामला सिर्फ ठाणे का नहीं है, यह पूरे देश का है। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपनी बेटियों को कैसा समाज दे रहे हैं। क्या हम उन्हें एक ऐसा माहौल दे पा रहे हैं जहाँ वे बिना किसी डर और शर्म के बड़ी हो सकें? ठाणे की यह घटना एक wake-up call है। अगर हम आज नहीं जागे, तो कल बहुत देर हो जाएगी।