‘यह अब और नहीं चल सकता’: चैनल पर नई रणनीति
इंग्लिश चैनल के बर्फीले पानी में छोटी-छोटी नावों पर अपनी जान जोखिम में डालकर ब्रिटेन पहुँचने वाले माइग्रेंट्स का मुद्दा दशकों से एक राजनीतिक सिरदर्द बना हुआ है। लेकिन अब, ब्रिटेन और फ्रांस ने इस पर लगाम लगाने के लिए एक नई, और विवादास्पद, रणनीति पर सहमति बनाई है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री (PM) कीर स्टार्मर और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच हुई उच्च-स्तरीय बातचीत के बाद एक डील को अंतिम रूप दिया गया है, जिसका मकसद इन खतरनाक यात्राओं को रोकना है। दोनों नेताओं ने एक सुर में कहा, “We agree this can’t go on.” (हम सहमत हैं कि यह अब और नहीं चल सकता)।
इस डील का सबसे महत्वपूर्ण पहलू एक ‘पायलट स्कीम’ है, जिसके तहत चैनल पार करने वाले कुछ प्रवासियों को वापस फ्रांस भेजा जाएगा। यह समझौता दोनों देशों के बीच सहयोग की एक नई कड़ी है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता और नैतिकता पर गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं। एक तरफ जहाँ सरकार इसे एक बड़ी कामयाबी के तौर पर पेश कर रही है, वहीं आलोचक इसे समस्या की विशालता के सामने एक बहुत छोटा कदम बता रहे हैं। यह डील अवैध माइग्रेशन की उस जटिल पहेली को सुलझाने का एक गंभीर प्रयास है या सिर्फ राजनीतिक दबाव कम करने की एक और कोशिश, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
डील की बारीकियां: क्या है ‘वन इन, वन आउट’ प्लान?
इस नए समझौते का केंद्रबिंदु एक ‘वन इन, वन आउट’ सिस्टम का विचार है। सूत्रों के मुताबिक, डील के तहत एक पायलट प्रोग्राम शुरू किया जाएगा जिसमें हर हफ्ते लगभग 50 माइग्रेंट्स, जो छोटी नावों के ज़रिए UK पहुँचते हैं, उन्हें वापस फ्रांस भेजा जाएगा। इसके बदले में, ब्रिटेन फ्रांस से उतने ही ‘अन्य’ शरणार्थियों को स्वीकार करने पर सहमत हो सकता है। हालाँकि, यह ‘अन्य’ शरणार्थी कौन होंगे, उनके चयन का आधार क्या होगा, इस पर अभी तक पूरी स्पष्टता नहीं है।
इस योजना का मकसद उस ‘पुल फैक्टर’ को कमज़ोर करना है जो माइग्रेंट्स को UK आने के लिए प्रेरित करता है। विकिपीडिया के ‘माइग्रेंट्स अराउंड कैलेस’ लेख के अनुसार, कई प्रवासी फ्रांस या अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में ब्रिटेन को तरजीह देते हैं। इसके पीछे के कारण हैं ‘greater economic growth’ (बेहतर आर्थिक विकास) और ‘the relative ease of finding illegal undocumented work’ (अवैध रूप से बिना दस्तावेज़ों के काम मिलने में आसानी)। सरकार को उम्मीद है कि जब प्रवासियों को यह संदेश जाएगा कि UK पहुँचने पर उन्हें वापस भेजा जा सकता है, तो वे यह खतरनाक यात्रा करने से हिचकिचाएंगे।
लेकिन 50 की संख्या पर सबसे ज़्यादा सवाल उठ रहे हैं। यह डील उस दिन फाइनल हुई जब समाचार एजेंसी BBC ने खुद 220 माइग्रेंट्स को केंट के तट पर उतरते हुए देखा। ऐसे में, जहाँ एक दिन में सैकड़ों लोग आ रहे हों, वहाँ एक हफ्ते में सिर्फ 50 को वापस भेजना क्या समुद्र में एक बूँद जैसा नहीं है?
ज़मीनी हकीकत और राजनीतिक रण
इस डील की घोषणा भले ही बंद दरवाज़ों के पीछे हुई हो, लेकिन इसकी ज़मीनी हकीकत और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ सड़कों और सोशल मीडिया पर गूँज रही हैं। एक तरफ, राष्ट्रपति मैक्रों ने वादा किया है कि UK और फ्रांस मिलकर ‘will deliver’ (परिणाम देंगे), वहीं दूसरी तरफ आलोचकों की फौज खड़ी है।
इस मुद्दे पर हमेशा मुखर रहने वाले निगेल फराज ने एक बार फिर अपनी कठोर नीति की वकालत की है। उनका कहना है कि ब्रिटेन को ‘must refuse to take male small boat migrants’ (छोटी नावों से आने वाले पुरुष प्रवासियों को लेने से इनकार कर देना चाहिए)। उनकी राय में, यह आधा-अधूरा उपाय समस्या को हल नहीं करेगा।
आम जनता की प्रतिक्रिया भी मिली-जुली है। Reddit पर एक यूज़र ने इस योजना का मज़ाक उड़ाते हुए लिखा, “The 50 or so going back compared to 1000’s coming over is just laughable.” (हज़ारों लोगों के आने की तुलना में 50 लोगों का वापस जाना बस हास्यास्पद है)। यह टिप्पणी उस व्यापक संदेह को दर्शाती है जो इस योजना की क्षमता को लेकर लोगों के मन में है। लोगों को डर है कि यह योजना सिर्फ दिखावे के लिए है और इससे ज़मीनी स्तर पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।
क्या यह प्लान कामयाब होगा? एक मिलियन-डॉलर सवाल
अंत में, सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह नई डील कामयाब होगी? क्या कीर स्टार्मर और इमैनुएल मैक्रों की यह योजना उन तस्करों के नेटवर्क को तोड़ पाएगी जो हज़ारों लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं? इस ‘पायलट स्कीम’ की सफलता कई चीज़ों पर निर्भर करेगी। पहला, क्या फ्रांस भेजे गए माइग्रेंट्स को दोबारा चैनल पार करने से रोकने में सक्षम होगा? दूसरा, ‘वन इन, वन आउट’ के तहत UK में लाए जाने वाले शरणार्थियों की प्रक्रिया कितनी पारदर्शी होगी?
यह योजना एक दोधारी तलवार है। अगर यह सफल होती है, तो यह स्टार्मर सरकार के लिए एक बड़ी राजनीतिक जीत होगी और यह अवैध माइग्रेशन से निपटने के लिए एक मॉडल बन सकती है। लेकिन अगर यह विफल रहती है, तो यह न केवल करदाताओं के पैसे की बर्बादी होगी, बल्कि यह सरकार की साख पर भी एक बड़ा सवालिया निशान लगा देगी।
फिलहाल, यह सिर्फ एक शुरुआत है। एक ऐसी शुरुआत जिसकी परीक्षा चैनल के अशांत पानी और यूरोप की जटिल राजनीतिक हवाओं के बीच होनी है। इस डील का असली लिटमस टेस्ट आंकड़ों में होगा – क्या छोटी नावों से आने वालों की संख्या में वाकई कोई गिरावट आती है? जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक यह डील सिर्फ कागज़ पर एक और वादा बनकर रह जाएगी।