मौका दोबारा नहीं मिलेगा’: ब्रायन लारा के सम्मान में रिकॉर्ड छोड़ने पर बेन स्टोक्स ने मुल्डर का उड़ाया मज़ाक?

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‘शॉकिंग कॉल’: जब सम्मान के आगे मौका छोटा पड़ गया

क्रिकेट की दुनिया सिर्फ चौकों-छक्कों और विकटों का खेल नहीं है, यह किरदारों और फैसलों की कहानी भी है। हाल ही में, क्रिकेट जगत एक ऐसे ही फैसले का गवाह बना जिसने खेल भावना (sportsmanship) की एक नई मिसाल पेश की। दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेटर वियान मुल्डर जब एक मैच के दौरान इतिहास रचने के करीब थे, तो उन्होंने कुछ ऐसा किया जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी। 400 रनों के उस जादुई आंकड़े के करीब पहुंचकर, जो उन्हें क्रिकेट के इतिहास में अमर कर सकता था, मुल्डर ने अपनी पारी घोषित कर दी। वजह? क्रिकेट के ‘प्रिंस’ ब्रायन लारा के प्रति सम्मान। मुल्डर नहीं चाहते थे कि लारा का 400 रनों का ऐतिहासिक रिकॉर्ड ‘untouched’ न रहे।

यह एक ऐसा पल था जिसने क्रिकेट प्रेमियों का दिल जीत लिया। हर तरफ मुल्डर की खेल भावना की तारीफ हो रही थी। लेकिन जब यही सवाल इंग्लैंड के आक्रामक कप्तान बेन स्टोक्स के सामने आया, तो उनका जवाब उतना ही ‘brutal’ था जितनी उनकी बल्लेबाज़ी। भारत के खिलाफ तीसरे टेस्ट से पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, जब स्टोक्स से मुल्डर के इस ‘shocking call’ के बारे में पूछा गया, तो वह अपनी हँसी नहीं रोक पाए।

हँसते हुए स्टोक्स ने जो कहा, वह मुल्डर के सम्मानजनक फैसले पर एक तरह का ‘reality check’ था। स्टोक्स ने कहा, “He’s not going to get that opportunity again.” (उसे यह मौका दोबारा नहीं मिलेगा।)

स्टोक्स का यह एक वाक्य, जो भले ही हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा गया हो, क्रिकेट के दो अलग-अलग दर्शनों की सीधी टक्कर को उजागर करता है। एक तरफ मुल्डर का सम्मान और आदर्शवाद है, तो दूसरी तरफ स्टोक्स का निर्मम व्यावसायिकता और हर मौके को भुनाने का ‘killer instinct’ है।

ब्रायन लारा का 400: एक रिकॉर्ड नहीं, एक Everest

यह समझना ज़रूरी है कि वियान मुल्डर ने किस चीज़ को छोड़ा। टेस्ट क्रिकेट में 400 रन बनाना कोई आम बात नहीं है। यह क्रिकेट का माउंट एवरेस्ट है, जिस पर आज तक सिर्फ एक ही इंसान, ब्रायन लारा, चढ़ पाया है। 2004 में इंग्लैंड के खिलाफ बनाए गए ये 400* रन सिर्फ एक स्कोर नहीं, बल्कि सहनशक्ति, प्रतिभा और मानसिक दृढ़ता का प्रतीक हैं। कई महान बल्लेबाज़ आए और गए, लेकिन कोई भी इस शिखर के करीब भी नहीं पहुँच सका।

ऐसे में जब मुल्डर के पास इस इतिहास को दोहराने या तोड़ने का मौका आया, तो उन्होंने इसे लारा के सम्मान में छोड़ दिया। उनका तर्क था कि कुछ रिकॉर्ड इतने महान होते हैं कि उन्हें छूना भी एक तरह से उनका अपमान करने जैसा है। यह एक शुद्धतावादी (purist) सोच है, जो खेल को आंकड़ों से ऊपर रखती है। मुल्डर ने दिखाया कि उनके लिए एक महान खिलाड़ी का सम्मान, अपने व्यक्तिगत मील के पत्थर से कहीं ज़्यादा बड़ा है।

स्टोक्स का नज़रिया: ‘Bazball’ का दर्शन

अब आते हैं बेन स्टोक्स पर। स्टोक्स की कप्तानी में इंग्लैंड ने टेस्ट क्रिकेट को खेलने का तरीका ही बदल दिया है। ‘Bazball’ के नाम से मशहूर इस रणनीति का मूल मंत्र है – आक्रामकता। डरो मत, पीछे मत हटो, और हर मौके पर हमला करो। स्टोक्स और कोच ब्रेंडन मैकुलम ने इंग्लैंड की टीम में यह विश्वास भरा है कि नतीजा कुछ भी हो, लेकिन ‘intent’ में कमी नहीं आनी चाहिए।

इस मानसिकता वाले खिलाड़ी के लिए मुल्डर का फैसला समझना मुश्किल है। स्टोक्स की दुनिया में, अगर आप 400 के करीब हैं, तो आप सिर्फ 400 नहीं बनाते, आप 500 बनाने की सोचते हैं। आप रिकॉर्ड तोड़ने के लिए खेलते हैं, उनका सम्मान करने के लिए नहीं। उनके लिए, खेल का सबसे बड़ा सम्मान यही है कि आप अपनी पूरी क्षमता से खेलें और हर सीमा को लांघने की कोशिश करें।

उनका हँसना और यह कहना कि ‘उसे यह मौका दोबारा नहीं मिलेगा’ इसी सोच का प्रतिबिंब है। यह क्रूर लग सकता है, लेकिन यह पेशेवर खेल की सच्चाई है। क्रिकेट में महान बनने के मौके रोज़-रोज़ नहीं मिलते। स्टोक्स का बयान एक कप्तान का बयान है, जो अपने खिलाड़ियों से यही उम्मीद करता है कि वे ऐसे मौकों को दोनों हाथों से लपकें, उन्हें सम्मान की थाली में सजाकर वापस न लौटा दें।

खेल भावना बनाम पेशेवर ज़िद: एक अंतहीन बहस

मुल्डर और स्टोक्स का यह प्रकरण क्रिकेट की एक पुरानी बहस को फिर से ज़िंदा कर देता है: क्या बड़ा है – खेल भावना या जीतने की ज़िद? क्या एक खिलाड़ी को आदर्शों के लिए खेलना चाहिए या फिर हर हाल में जीतने के लिए?

एक तरफ वे लोग हैं जो मानते हैं कि मुल्डर ने जो किया वह क्रिकेट की सच्ची आत्मा को दर्शाता है। यह दिखाता है कि खेल सिर्फ हार-जीत से बढ़कर है। वहीं दूसरी तरफ स्टोक्स जैसे लोग हैं, जिनका मानना है कि मैदान पर उतरने का एकमात्र मकसद अपनी काबिलियत की अंतिम सीमा तक जाना है। अगर आप ऐसा नहीं करते, तो आप न सिर्फ खुद के साथ, बल्कि खेल के साथ भी नाइंसाफी कर रहे हैं।

स्टोक्स की टिप्पणी को ‘light-hearted’ भी कहा जा रहा है और ‘brutal verdict’ भी। शायद यह दोनों है। यह एक दोस्त की चुटकी भी है और एक पेशेवर प्रतिद्वंद्वी का कठोर मूल्यांकन भी। यह हमें याद दिलाता है कि ड्रेसिंग रूम में जहाँ सम्मान और दोस्ती होती है, वहीं मैदान पर एक निर्मम प्रतिस्पर्धा भी होती है।

अंत में, वियान मुल्डर अपने फैसले के लिए याद किए जाएंगे और बेन स्टोक्स अपने इस बेबाक बयान के लिए। मुल्डर ने दिलों को जीता, लेकिन शायद इतिहास की किताबों में अपना नाम दर्ज कराने का एक सुनहरा मौका खो दिया। वहीं, स्टोक्स ने हमें याद दिलाया कि महानता की राह आदर्शों के फूलों से नहीं, बल्कि अवसरों को भुनाने के काँटों से होकर गुज़रती है। अब यह क्रिकेट प्रेमियों को तय करना है कि वे किस रास्ते को ज़्यादा सम्मान देते हैं।

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