ग्लैमर की दुनिया का वो स्याह सच…
चकाचौंध से भरी ग्लैमर की दुनिया… कैमरे की फ्लैशलाइट, महंगे कपड़े और मुस्कुराते चेहरे। पर्दे पर सब कुछ परफेक्ट दिखता है। लेकिन इस चमक के पीछे एक स्याह सच भी छिपा होता है – दबाव, अकेलापन और क्रूरता का सच। इसी सच की एक परत उधेड़ी है ‘जग घूमेया’ और ‘कुछ खास है’ जैसे सुपरहिट गानों की सिंगर नेहा भसीन ने। अपनी बेबाक शख्सियत और दमदार आवाज के लिए जानी जाने वाली नेहा ने हाल ही में कॉमेडियन भारती सिंह और उनके पति हर्ष लिंबाचिया के पॉडकास्ट पर अपनी जिंदगी का एक ऐसा पन्ना खोला, जिसे सुनकर हर कोई सन्न रह गया।
एक ‘heartfelt’ बातचीत में नेहा ने खुलासा किया कि 20 साल की एक मासूम लड़की, जो सपनों की दुनिया में बस कदम रख ही रही थी, उसने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। वजह? Body shaming। उन्हें ‘मोटी’ होने के ताने दिए गए थे। यह खुलासा अपने आप में दर्दनाक है, लेकिन इसकी सबसे झकझोर देने वाली बात यह है कि जिस वक्त नेहा को ‘मोटी’ कहकर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा था, उस वक्त उनका वजन सिर्फ और सिर्फ 50 किलो था। यह सिर्फ एक खुलासा नहीं है, बल्कि उस इंडस्ट्री पर एक करारा तमाचा है जो खूबसूरती को वजन के तराजू पर तौलती है।
जब 50 किलो वजन भी ‘मोटापा’ बन गया
यह बात उन दिनों की है जब भारत में पहला ऑल-गर्ल बैंड ‘Viva’ बना था। नेहा भसीन भी इस बैंड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं। रातों-रात मिली प्रसिद्धि अपने साथ एक भारी कीमत लेकर आई। नेहा ने पॉडकास्ट पर बताया, “जब मैं Viva में थी, तब मैं 20 साल की थी। उस समय मेरा वजन 50 किलो था, लेकिन मुझे मोटी कहा जाता था। सोचिए, 50 किलो की लड़की को आप मोटी कह रहे हैं।”
यह सिर्फ एक कमेंट नहीं था। यह एक निरंतर चलने वाला मानसिक हमला था। एक ऐसी इंडस्ट्री में जहां हर कदम पर आपको आंका जाता है, जहां आपका टैलेंट नहीं, बल्कि आपकी कमर का साइज ज्यादा मायने रखता है, वहां एक 20 साल की लड़की के लिए यह सब झेलना कितना मुश्किल रहा होगा, इसका अंदाजा लगाना भी कठिन है। यह वह दौर था जब ‘साइज जीरो’ का भूत इंडस्ट्री पर सवार था। हर किसी पर परफेक्ट दिखने का एक अमानवीय दबाव (inhuman pressure) था। नेहा के लिए यह दबाव असहनीय हो गया। उन्हें ऐसा महसूस कराया गया जैसे वो इंडस्ट्री के बनाए खूबसूरती के पैमानों में फिट नहीं होतीं, जबकि हकीकत में वह पूरी तरह से स्वस्थ थीं।
वो खौफनाक रात और आधी बोतल…
लगातार मिल रहे तानों और दबाव ने नेहा को अंदर से तोड़ दिया। उन्होंने उस खौफनाक रात को याद करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला कर लिया था। उनकी आवाज में उस 20 साल पुरानी पीड़ा का दर्द साफ झलक रहा था। उन्होंने कहा, “मैंने सुसाइड करने की कोशिश की थी। मैंने आधी बोतल (एक पदार्थ की) पी ली थी।” उन्होंने उस पदार्थ का नाम तो नहीं बताया, लेकिन यह साफ था कि वह एक जानलेवा कदम था।
यह उस हताशा का चरम था जो शब्दों के बाणों से पैदा हुई थी। सोचिए, किसी युवा मन पर इन तानों का कितना गहरा असर हुआ होगा कि उसे अपनी जिंदगी से ज्यादा आसान मौत का रास्ता लगा। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने शब्दों से किसी को किस हद तक तोड़ सकते हैं। नेहा की कहानी इस बात का जीवंत प्रमाण है कि body shaming सिर्फ एक मजाक या हल्की-फुल्की आलोचना नहीं है, यह किसी की जान भी ले सकती है। यह एक धीमा जहर है जो इंसान के आत्मविश्वास को खत्म कर देता है और उसे अंधेरे की ओर धकेल देता है।
Body Shaming: सिर्फ एक शब्द नहीं, एक हथियार
नेहा भसीन आज एक सफल और आत्मविश्वास से भरी महिला हैं। उन्होंने उस दर्दनाक दौर को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन उसके जख्म आज भी ताजे हैं। आज उनका इस बारे में खुलकर बात करना बेहद हिम्मत का काम है। यह उन लाखों लड़कियों और लड़कों को आवाज देता है जो रोज इस तरह की मानसिक प्रताड़ना से गुजरते हैं। नेहा की कहानी एक Wake-up call है – समाज के लिए भी और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के लिए भी।
यह हमें याद दिलाता है कि किसी के शरीर पर टिप्पणी करना आपका हक नहीं है। ‘मोटा’, ‘पतला’, ‘काला’, ‘गोरा’ – ये सिर्फ शब्द नहीं हैं, ये हथियार हैं जो किसी के self-esteem को छलनी कर सकते हैं। नेहा का 50 किलो में ‘मोटा’ कहलाना इस बात का सबूत है कि समस्या लोगों के शरीर में नहीं, बल्कि देखने वालों की नजरों और समाज की संकीर्ण सोच में है। Mental Health आज भी हमारे देश में एक टैबू है, लेकिन नेहा जैसे सेलेब्रिटीज जब अपनी कहानियां साझा करते हैं, तो यह इस टैबू को तोड़ने में मदद करता है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि दयालु होना कितना जरूरी है, क्योंकि हमें नहीं पता कि हमारा एक शब्द किसी के लिए कितना भारी पड़ सकता है। यह उम्मीद की एक किरण भी है कि अगर आप ऐसे किसी दर्द से गुजर रहे हैं, तो आप अकेले नहीं हैं और मदद मांगना कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी ताकत है।