गिरफ्तारी और आक्रोश: हड़ताल का तात्कालिक कारण
तिरुवनंतपुरम। केरल की छात्र राजनीति में एक बार फिर भूचाल आ गया है। स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) ने गुरुवार, 10 जुलाई 2025 को पूरे राज्य में ‘स्टडी स्ट्राइक’ का ऐलान किया है। यह फैसला SFI के 30 कार्यकर्ताओं, जिन्हें संगठन ‘कॉमरेड’ (സഖാക്കൾ) कहता है, की पुलिस द्वारा रिमांड पर लिए जाने के बाद आया। इस कार्रवाई ने छात्र संगठन को नाराज कर दिया है, खासकर इसलिए क्योंकि रिमांड पर लिए गए लोगों में SFI के राज्य सचिव भी शामिल हैं, जो संगठन का एक प्रमुख चेहरा हैं।
SFI की ओर से जारी बयान में इस पुलिस कार्रवाई को लोकतंत्र पर हमला और छात्रों की आवाज को दबाने की कोशिश बताया गया है। संगठन ने इसे एक ‘अघोषित इमरजेंसी’ करार दिया है। हालांकि, पुलिस ने अभी तक यह आधिकारिक रूप से स्पष्ट नहीं किया है कि इन 30 कार्यकर्ताओं को किन विशिष्ट आरोपों के तहत रिमांड पर लिया गया है। यह सूचना का अभाव तनाव को और बढ़ा रहा है और कई तरह की अटकलों को जन्म दे रहा है। SFI का कहना है कि यह कार्रवाई राजनीति से प्रेरित है और इसका मकसद उनके उस आंदोलन को कमजोर करना है जो वे गवर्नर की नीतियों के खिलाफ चला रहे हैं। यह गिरफ्तारी इस टकराव में एक ‘trigger point’ साबित हुई है, जिसने SFI को एक राज्यव्यापी हड़ताल जैसा बड़ा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।
‘भगवाकरण’ का आरोप: गवर्नर और SFI के बीच टकराव
इस हड़ताल का दूसरा और शायद ज्यादा बड़ा कारण SFI और राज्य के गवर्नर के बीच चल रहा गहरा वैचारिक टकराव है। SFI ने गवर्नर पर राज्य के विश्वविद्यालयों में ‘भगवाकरण’ (saffronization) को बढ़ावा देने का संगीन आरोप लगाया है। ‘भगवाकरण’ एक राजनीतिक शब्द है जिसका इस्तेमाल अक्सर शिक्षा प्रणाली में दक्षिणपंथी विचारधारा को शामिल करने के आरोपों के लिए किया जाता है। SFI का आरोप है कि गवर्नर अपने पद का दुरुपयोग करके विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता में हस्तक्षेप कर रहे हैं और महत्वपूर्ण पदों पर ऐसी नियुक्तियां कर रहे हैं जो एक विशेष राजनीतिक विचारधारा के प्रति झुकाव रखती हैं।
यह लड़ाई सिर्फ नियुक्तियों तक सीमित नहीं है। SFI का मानना है कि पाठ्यक्रम (curriculum) में बदलाव और अकादमिक नीतियों के निर्धारण में भी गवर्नर का हस्तक्षेप बढ़ रहा है, जिसका उद्देश्य केरल के प्रगतिशील शैक्षिक माहौल को बदलना है। हालांकि SFI ने प्रेस विज्ञप्ति में गवर्नर के उन विशिष्ट हस्तक्षेपों का बिंदुवार विवरण नहीं दिया है, जिन्हें वे ‘भगवाकरण’ का प्रयास मानते हैं, लेकिन यह आरोप राज्य में छात्र राजनीति और उच्च शिक्षा के भविष्य को लेकर चल रही एक बड़ी और संवेदनशील बहस का हिस्सा है। केरल में लेफ्ट-समर्थित छात्र संगठन और केंद्र द्वारा नियुक्त गवर्नर के बीच का यह टकराव कोई नई बात नहीं है, लेकिन 30 कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी ने इस आग में घी डालने का काम किया है। SFI इस हड़ताल को सिर्फ अपने कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए नहीं, बल्कि उच्च शिक्षा की आत्मा को बचाने की लड़ाई के रूप में पेश कर रहा है।
केरल पर क्या होगा असर?
गुरुवार को होने वाली इस ‘स्टडी स्ट्राइक’ का असर पूरे केरल पर पड़ना तय है। SFI राज्य के सबसे मजबूत और संगठित छात्र संगठनों में से एक है, और जब भी वह हड़ताल का आह्वान करता है, तो इसका व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है। राज्य भर के स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप पड़ने की आशंका है। छात्रों से क्लास का बहिष्कार करने की अपील की गई है।
सिर्फ क्लासरूम ही नहीं, बल्कि सड़कों पर भी इसका असर दिख सकता है। SFI ने राज्य भर में विरोध प्रदर्शन और मार्च निकालने की योजना बनाई है। प्रमुख शहरों और जिला मुख्यालयों में छात्रों के बड़े पैमाने पर इकट्ठा होने की उम्मीद है, जिससे ट्रैफिक और सामान्य जनजीवन भी प्रभावित हो सकता है। प्रशासन और पुलिस के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण दिन होगा, क्योंकि उन्हें कानून और व्यवस्था बनाए रखने के साथ-साथ छात्रों के लोकतांत्रिक विरोध के अधिकार का भी सम्मान करना होगा। अतीत में इस तरह के प्रदर्शनों में पुलिस और छात्रों के बीच झड़पें भी देखी गई हैं, इसलिए तनाव की स्थिति बनी हुई है। अभिभावकों और आम छात्रों के लिए यह एक अनिश्चितता का दिन होगा, क्योंकि कई परीक्षाएं और अकादमिक समय-सीमाएं इस हड़ताल से प्रभावित हो सकती हैं।
अनसुलझे सवाल और आगे की राह
यह पूरा घटनाक्रम कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है जिनके जवाब फिलहाल नहीं मिले हैं। पहला और सबसे अहम सवाल यह है कि SFI के राज्य सचिव समेत 30 कार्यकर्ताओं पर आखिर आरोप क्या हैं? पुलिस की चुप्पी इस मामले को और भी रहस्यमयी बना रही है। दूसरा, गवर्नर के कार्यालय ने ‘भगवाकरण’ के इन गंभीर आरोपों पर अब तक कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी है? उनकी चुप्पी इन आरोपों को और हवा दे रही है।
आगे की राह टकराव भरी नजर आ रही है। यदि सरकार और SFI के बीच बातचीत के जरिए कोई समाधान नहीं निकलता है, तो यह हड़ताल विरोध प्रदर्शनों की एक लंबी श्रृंखला की शुरुआत हो सकती है। यह मामला अब सिर्फ छात्रों और पुलिस के बीच का नहीं रह गया है; यह राज्य सरकार, छात्र संगठनों और गवर्नर के कार्यालय के बीच एक त्रिकोणीय शक्ति संघर्ष का रूप ले चुका है। गुरुवार की हड़ताल यह तय करेगी कि यह टकराव किस दिशा में आगे बढ़ेगा। क्या यह एक दिन का विरोध प्रदर्शन होगा या केरल में एक लंबे राजनीतिक और अकादमिक गतिरोध की शुरुआत? जवाब भविष्य के गर्भ में है, लेकिन एक बात साफ है – केरल की शिक्षा और राजनीति का गलियारा एक बड़े तूफान के मुहाने पर खड़ा है।